हल्द्वानी – साल 2024 में दर्ज पॉक्सो और धारा 376 के चर्चित मामले ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है। इस मामले में आरोपी बनाए गए हिमांशु पाठक ने अब खुद को बेगुनाह बताते हुए गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि उन्हें झूठा फंसाया गया और जांच अधिकारी ने चार्जशीट में उनका नाम बिना ठोस आधार के शामिल किया।
हिमांशु पाठक का दावा है कि उनके पास कुछ ऑडियो रिकॉर्डिंग थीं, जिनमें किसी तरह के पुलिस लेन-देन की बात नहीं थी। सवाल यह है कि अगर उनके पास सबूत थे तो उन्होंने उन्हें अदालत या अपने अधिवक्ता को क्यों नहीं सौंपा और सात महीने जेल में रहने के बाद ही बेगुनाही की दलील क्यों दी?

मामले में उठे मुख्य सवाल
- अगर हिमांशु पाठक बेगुनाह थे तो पूरे एक साल तक खामोश क्यों रहे?
- उनके पास सबूत थे तो उन्होंने उन्हें जांच अधिकारी या अदालत को क्यों नहीं दिया?
- FIR में नाम न होने के बावजूद चार्जशीट में उनका नाम कैसे जुड़ा?
- क्या अधिवक्ता और जांच अधिकारी की मिलीभगत से महत्वपूर्ण तथ्य दबाए गए?
- अदालत में हुआ समझौता किस आधार पर और किसके दबाव में कराया गया?
तो क्या पत्रकार को बदनाम करने की है साजिश !
हिमांशु पाठक और पीड़िता दोनों एक पत्रकार के पड़ोसी बताए जा रहे हैं। पत्रकार का कहना है कि उसने केवल सामाजिक स्तर पर मदद की थी, लेकिन अब उसकी छवि धूमिल करने की कोशिश की जा रही है। वहीं, कमिश्नर कार्यालय में हुई सुनवाई में भी पत्रकार से जुड़े किसी लेन-देन की पुष्टि नहीं हुई।
पत्रकार ने साफ कहा कि उसे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है और वह अदालत से न्याय की उम्मीद रखते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोग राजनीति और निजी स्वार्थ के चलते उन्हें बदनाम करने की साजिश कर रहे हैं।
मामला बेहद गंभीर और संवेदनशील है। इसमें कई सवाल अब भी अनुत्तरित हैं—क्या जांच निष्पक्ष हुई थी, क्या किसी ने दबाव में काम किया, और समझौते की असली वजह क्या थी। जनता और प्रशासन दोनों इस मामले के स्पष्ट खुलासे का इंतजार कर रहे हैं।
आपको बता दें यह मामला बहुत ही गंभीर है केवल पत्रकार को बदनाम करने की साजिश की जा रही है क्योंकि कमिश्नर कार्यालय में भी कमिश्नर महोदय ने उसे पत्रकार की कोई बात नहीं सुनी जबकि सारे पत्रकार लोग वहां मौजूद थे यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है अब जल्दी इसका दूध का दूध पानी का पानी सामने आएगा क्योंकि जिस प्रकार से एक पत्रकार पर गंभीर आरोप और उसे बदनाम करने की कोशिश सोशल मीडिया और अन्य को प्रकार के आरोप लगाए जा रहे हैं और जो आरोप लगा रहे हैं वह खुद अपराध अधिक मामलों में लिप्त है अभी कई सवाल जनता से पूछे जा रहे इन सवालों का जवाब जनता दे क्या वह पत्रकार किसी की मदद करने के लिए दोषी है हम आपको बता दे वह अपनी मदद मांगने उसे पत्रकार के पास पीड़िता आई थी क्योंकि हिमांशु पाठक उसे पत्रकार के नीचे निवास करते थे और इस मामले से पहले पत्रकार से हिमांशु पाठक पहले भी पैसों का लेनदेन किराए को लेकर कर चुके हैं का लेनदेन भी कर चुके हैं तो दोषी कौन है दोस्तों
वही कमिश्नर महोदय ने पत्रकार को बताया कि आप इस मामले में हस्तक्षेप क्यों कर रहे थे दोस्तों हम आपको बता दें कि पीड़िता और हिमांशु पाठक दोनों ही पत्रकार के निवास के पास रहते रहते थे और दोनों ही एक दूसरे के साथ शादी करने की बात कर रहे थे दोस्तों पीड़िता नाबालिक थी तो पत्रकार के द्वारा उन्हें 2 साल तक खामोश रहने के लिए कहा गया कि जब तक पीड़िता बालिक नहीं होती तो शादी नहीं हो सकती है और जबकि FIR मैं हिमांशु पाठक का नाम कहीं से कहीं तक नहीं है फिर जांच अधिकारी ने हिमांशु पाठक का नाम क्यों लिया क्यों उसे जेल भेजा गया क्या इसमें पत्रकार की कोई गलती है केवल पत्रकार को बदनाम करने के लिए पूरी साजिश की जा रही है वही पत्रकार का कहना है कि उसे न्यायालय पर पूरा भरोसा है न्यायालय से उसे न्याय मिलेगा और जिन लोगों ने उसकी छवि को धूमिल करने की कोशिश की है उनके खिलाफ भी न्यायालय जाना पड़ेगा अगर किसी की मदद करना जुर्म है दोस्तों तो आज के बाद कोई किसी की इस दुनिया में मदद नहीं करेगा

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