देहरादून – 38वें राष्ट्रीय खेलों को भव्य और सफल बनाने में देशभर से आए तकनीकी विशेषज्ञों और स्वयंसेवकों ने अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन अब वही लोग अपने मेहनताने को लेकर हताश और परेशान हैं। खेलों को संपन्न हुए चार महीने बीत चुके हैं, लेकिन उत्तराखंड सरकार की ओर से अब तक उन्हें उनका मानदेय नहीं मिल सका है।
उत्तराखंड सरकार की अपील पर राष्ट्रीय खेलों में 35 अलग-अलग खेलों के लिए तकनीकी दल और स्पोर्ट्स स्पेसिफिक वॉलंटियर्स तैनात किए गए थे। आयोजनों में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही—किसी ने स्कोरिंग देखी, तो किसी ने तकनीकी संचालन, मैदान प्रबंधन, खिलाड़ी नियंत्रण जैसी अहम जिम्मेदारियां निभाईं। लेकिन आज वे सभी सिर्फ एक सवाल पूछ रहे हैं—“हमारा मेहनताना कब मिलेगा?”

तकनीकी सदस्यों और वॉलंटियर्स की संख्या सैकड़ों में थी, जो विभिन्न राज्यों से आए थे। अब वे सभी राष्ट्रीय फेडरेशनों से लगातार संपर्क कर रहे हैं। लेकिन राष्ट्रीय फेडरेशन खुद उत्तराखंड ओलंपिक एसोसिएशन से जवाब मांग रहे हैं। एसोसिएशन राज्य के खेल विभाग से मानदेय के लिए बार-बार अनुरोध कर चुकी है, लेकिन खेल विभाग का एक ही जवाब है—“बजट का इंतजार है।”
इस संबंध में रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के कोषाध्यक्ष और राष्ट्रीय खेलों के दौरान जीटीसीसी सदस्य रहे डॉ. एस.पी. देशवाल ने बताया, “सभी तकनीकी दल और वॉलंटियर्स ने उत्साह से खेलों में योगदान दिया। सरकारी प्रक्रिया में कुछ समय लगता है, लेकिन जैसे ही बजट स्वीकृत होगा, राशि जारी की जाएगी। सभी को उनका मेहनताना जरूर मिलेगा।”
चार महीने की लंबी प्रतीक्षा ने इन कर्मियों का धैर्य तोड़ना शुरू कर दिया है। वे देश के अलग-अलग हिस्सों से आकर राष्ट्रीय सेवा में लगे थे, अब उन्हें उनकी मेहनत की कीमत समय पर न मिलना खेल मंत्रालय और प्रशासन की कार्यशैली पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।

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