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उत्तराखंड के जंगलों में संकटग्रस्त फिशिंग कैट का सफल बचाव…. 

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हल्द्वानी – उत्तराखंड के तराई ईस्ट डिवीजन में एक दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजाति, फिशिंग कैट (Prionailurus viverrinus) को गंभीर स्थिति में पाया गया और वन विभाग की तत्परता से सफलतापूर्वक बचाया गया। यह प्रजाति भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I में शामिल है और राज्य में इसकी उपस्थिति अत्यंत विरल मानी जाती है।

बराकोली सितारगंज रेंज के कर्मचारियों द्वारा नियमित गश्त के दौरान इस दुर्लभ बिल्ली को देखा गया। इसकी स्थिति नाजुक थी, जिस कारण बिना समय गंवाए इसे विशेष पशु चिकित्सा केंद्र भेजा गया, जहां अनुभवी चिकित्सकों की टीम ने इसकी देखभाल की। उपचार के बाद, बिल्ली को सफलतापूर्वक उसके प्राकृतिक आवास में पुनः छोड़ दिया गया।

इस पूरे अभियान में तराई ईस्ट के डीएफओ, नैनीताल के डीएफओ, पश्चिमी सर्कल के मुख्य वन संरक्षक, चिकित्सा टीम और बराकोली रेंज के कर्मचारियों का सराहनीय सहयोग रहा।

फिशिंग कैट, जो सामान्यतः भारत के पूर्वी और दक्षिणी भागों की आर्द्रभूमियों में पाई जाती है, उत्तर भारत में बहुत ही कम देखने को मिलती है। हाल ही में अक्टूबर 2023 में ग्रेटर कॉर्बेट लैंडस्केप में इसका पहला फोटोग्राफिक रिकॉर्ड दर्ज किया गया था, जिससे यह घटना और भी विशेष बन जाती है।

अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने इसे ‘संकटग्रस्त’ श्रेणी में रखा है। इस प्रजाति को सबसे बड़ा खतरा आर्द्रभूमि के लगातार होते विनाश, प्रदूषण और मानव अतिक्रमण से है।

यह सफल बचाव न केवल उत्तराखंड के वन विभाग की प्रतिक्रिया क्षमता और समर्पण को दर्शाता है, बल्कि राज्य की जैव विविधता की रक्षा के लिए किए जा रहे गंभीर प्रयासों का भी प्रमाण है। साथ ही, यह घटना आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण की महत्ता को भी रेखांकित करती है — जो न केवल फिशिंग कैट, बल्कि असंख्य अन्य वन्यजीव प्रजातियों के अस्तित्व के लिए भी आवश्यक है।

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