हल्द्वानी- उत्तराखंड की नौकरशाही में यदि कोई ऐसा नाम है जो प्रशासनिक दक्षता, संवेदनशीलता और साहित्यिक प्रतिभा तीनों को समान रूप से जीता है, तो वह नाम है आईएएस ललित मोहन रयाल। 2011 बैच के इस अधिकारी ने न केवल प्रशासनिक सेवा में अपने कार्यों से पहचान बनाई है, बल्कि एक लेखक, विचारक और संवेदनशील व्यक्तित्व के रूप में भी साहित्यिक जगत में अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी है।
शैक्षणिक योग्यता और बौद्धिक आधार

ललित मोहन रयाल की शैक्षणिक यात्रा बेहद समृद्ध रही है। उन्होंने इतिहास में एम.ए. और गणित में एम.एससी. की उपाधि प्राप्त की है — जो अपने आप में एक अनोखा संयोजन है। इतिहास ने उन्हें समाज की जड़ों और सांस्कृतिक निरंतरता को समझने की दृष्टि दी, वहीं गणित ने तार्किकता और विश्लेषण की शक्ति दी। यही कारण है कि उनके प्रशासनिक निर्णयों में संवेदनशीलता और विवेक का अद्भुत संतुलन दिखाई देता है।
प्रशासनिक करियर की यात्रा
2011 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन के बाद रयाल जी ने उत्तराखंड के विभिन्न जिलों और विभागों में उल्लेखनीय कार्य किया। अपने प्रशासनिक कार्यकाल में उन्होंने अपर सचिव मुख्यमंत्री कार्यालय, मुख्य सचिव के स्टाफ ऑफिसर, और कार्मिक एवं सतर्कता विभाग जैसे अत्यंत जिम्मेदार पदों पर कार्य किया है। उनकी कार्यशैली की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे प्रशासन को केवल शासन का औजार नहीं, बल्कि जनसेवा और संवाद का माध्यम मानते हैं। उनकी प्राथमिकता सदैव पारदर्शिता, जवाबदेही और जनसंपर्क रही है। वे हर स्तर पर जनता की बात को सुनने और समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए जाने जाते हैं।
कई मौकों पर उन्होंने ज़मीनी स्तर पर जाकर समस्याओं को समझा और सीधे तौर पर जनता से संवाद किया — यह शैली उन्हें एक आम प्रशासक से अलग बनाती है।
लेखन और साहित्य की दुनिया
ललित मोहन रयाल का नाम प्रशासनिक दुनिया से आगे बढ़कर साहित्यिक जगत में भी सम्मान के साथ लिया जाता है। उनकी लेखनी में उत्तराखंड की धरती, समाज और संस्कृति की गंध है। वे अपनी रचनाओं में उन लोगों की बात करते हैं जो इतिहास के हाशिये पर रह गए, और जिनके श्रम, प्रेम और संघर्ष ने समाज की बुनियाद गढ़ी।
उनकी प्रमुख पुस्तकों में शामिल हैं:
1. खड़कमाफ़िकी स्मृतियों से – गढ़वाली समाज की स्मृतियों और इतिहास का गहन चित्रण।
2. अथश्री प्रयाग कथा – आस्था, संस्कृति और मानवीय संबंधों का दार्शनिक विमर्श।
3. कारितु कबीना हारी – लोकजीवन की संवेदनशीलता और सामाजिक विडंबनाओं पर केंद्रित रचना।
4. चकरी चतुरंग – प्रशासनिक और सामाजिक अनुभवों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण।
5. कल फिर जब सुबह होगी – सुप्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी की संगीत यात्रा पर आधारित एक अनूठा वृत्तांत।
नेगी की संगीत यात्रा से प्रेरणा
इलाहाबाद में अपने कार्यकाल के दौरान ललित मोहन रयाल ने नरेंद्र सिंह नेगी के गीतों से गहरी प्रेरणा ली। उनकी पुस्तक “कल फिर जब सुबह होगी” नेगी की संगीत यात्रा को केवल जीवनी की तरह नहीं, बल्कि लोक चेतना की सांगीतिक यात्रा के रूप में प्रस्तुत करती है। इस पुस्तक में नेगी के प्रमुख गीतों का हिंदी अनुवाद, व्याख्या और उनके सांस्कृतिक संदर्भों का विश्लेषण शामिल है। इसे उत्तराखंड की लोकसंगीत पर लिखी गई सबसे प्रामाणिक पुस्तकों में से एक माना जाता है।
लेखन की शैली और विषय-वस्तु
रयाल जी की लेखनी में रियासती समाज, सामंती मूल्य, लोकभाषा, सामाजिक यथार्थ और मानव मन की जटिलता का गहराई से अध्ययन मिलता है। उनकी भाषा सरल होने के साथ-साथ काव्यात्मक भी है। वे गढ़वाली और हिंदी दोनों में समान दक्षता रखते हैं। उनकी रचनाओं में गढ़वाली भाषा की मिठास, पर्वतीय समाज की पीड़ा, और भारतीय चिंतन की गहराई एक साथ दिखाई देती है।
व्यक्तित्व और दृष्टिकोण
ललित मोहन रयाल का व्यक्तित्व प्रशासनिक कठोरता और मानवीय कोमलता, दोनों का संगम है। वे मानते हैं कि “प्रशासन का असली अर्थ जनता की सेवा और समाज में विश्वास पैदा करना है।” उनकी यही सोच उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय बनाती है। साथ ही, वे यह भी मानते हैं कि “लेखन केवल आत्मअभिव्यक्ति नहीं, बल्कि समाज की आत्मा से संवाद करने का माध्यम है।”
उनका व्यक्तित्व गहराई, शालीनता और विवेक का मिश्रण है। वे कम बोलते हैं, पर जब बोलते हैं तो विचारों में गंभीरता और संवेदनशीलता झलकती है।
उत्तराखंड से जुड़ाव
गढ़वाल की मिट्टी में पले-बढ़े ललित मोहन रयाल अपने प्रदेश की संस्कृति और लोकजीवन से गहराई से जुड़े हैं।
उनकी रचनाओं में पहाड़ की खुशबू, लोकगीतों की लय और समाज की सच्ची तस्वीर मिलती है। वे मानते हैं कि “उत्तराखंड केवल एक भूगोल नहीं, बल्कि एक जीवंत संस्कृति है, जिसमें प्रकृति और मनुष्य के बीच गहरा संवाद है।”
आईएएस ललित मोहन रयाल प्रशासनिक कार्यकुशलता, साहित्यिक गहराई और मानवीय संवेदनशीलता — तीनों का प्रतीक हैं। वे उन दुर्लभ अधिकारियों में से हैं जो शासन और साहित्य दोनों को समाज सुधार का माध्यम मानते हैं।
उनकी पुस्तकों, विचारों और कार्यशैली से यह स्पष्ट झलकता है कि वे एक ऐसे प्रशासक हैं जो शब्दों से भी शासन करते हैं और कर्मों से भी प्रेरणा देते हैं।

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