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जिलाधिकारी के प्रयासों से ऐतिहासिक धरोहर फिर से लौट रहा पुराने स्वरूप में….

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पौड़ी – कभी प्रशासन की नब्ज़ रहा पौड़ी का ऐतिहासिक कलेक्ट्रेट भवन अब एक नये रूप में लोगों के सामने आने को तैयार है। लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व औपनिवेशिक शैली में बना यह भवन अब हेरिटेज भवन के रूप में विकसित किया जा रहा है। जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान के अथक प्रयासों से यह ऐतिहासिक धरोहर फिर से अपने भव्य स्वरूप में लौट रही है।

ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1840 में पौड़ी जनपद की स्थापना सहायक आयुक्त के अधीन की गयी थी, जिसका मुख्यालय पौड़ी में स्थापित हुआ। जिले के प्रशासनिक इकाई को चलाने के लिये एक भवन की आवश्यकता महसूस की गयी। इससे पूर्व प्रशासनिक इकाई का कार्य अस्थायी और अलग–अलग स्थानों से किया जाता रहा। इस जरूरत को महसूस करते हुये 1850 में कलेक्ट्रेट भवन का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। बताया जाता है कि इस भवन को बनने में 11 वर्ष लगे थे। उस समय महज 1.60 लाख रुपये में तैयार हुआ यह भवन भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) के दौर का मूक साक्षी रहा है। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद आईसीएस को भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) ने प्रतिस्थापित किया।

वर्ष 2021 में जब नया कलेक्ट्रेट भवन तैयार हुआ, तब पुराना भवन खाली कर दिया गया। लेकिन इसे यूं ही छोड़ देने की बजाय, जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान ने इसे हेरिटेज भवन के रूप में विकसित करने का निश्चय किया। स्थानीय नागरिकों के उत्साह को साथ लेकर एक विशेष समिति गठित की गयी, जिसमें अधिकारी और इतिहासप्रेमी जनों को शामिल किया गया। जिलाधिकारी की अगुवाई में ब्रिटिश काल से जुड़े दस्तावेजों और प्रशासनिक व्यवस्थाओं की जानकारी जुटायी गयी। अब इस भवन में स्कूली बच्चों और पर्यटकों को ब्रिटिश काल की शासन प्रणाली, प्रशासनिक ढांचे, 1947 से पूर्व और उसके बाद की विकास गाथा की विस्तृत जानकारी उपलब्ध करायी जायेगी। यह भवन न केवल जिले की प्रशासनिक यात्रा का सजीव दस्तावेज होगा, बल्कि छात्रों व पर्यटकों के लिए ज्ञानवर्धक केंद्र भी बनेगा।

जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान कहते हैं कि धरोहर के रूप में इस कलेक्ट्रेट का नया जीवन न केवल जिले की ऐतिहासिक पहचान को सहेजेगा, बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी यह मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने बताया कि कार्य अंतिम चरण में है और भवन तैयार होते ही यहां ऐतिहासिक गतिविधियां शुरू कर दी जाएंगी। भवन का निर्माण कार्य 03 करोड़ 11 लाख की लागत से हो रहा है। उन्होंने कहा कि भवन के मूल स्वरूप को यथावत् रखा गया है। छत और जर्जर हिस्सों की मरम्मत के साथ उसे उसकी ऐतिहासिक पहचान के अनुरूप सजाया जा रहा है। यह भवन जहां इतिहास की झलक देगा, वहीं पर्यटकों के आकर्षण का नया केंद्र भी बनेगा।

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