नैनीताल – उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सूखाताल झील सौंदर्यीकरण मामले में सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि अब केवल “कागज़ी कार्रवाई और दिखावे का सौंदर्यीकरण” नहीं चलेगा। अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए कि कार्यदायी संस्था वास्तविक रूप से मैदान में उतरकर सौंदर्यीकरण कार्य पूरा करे। न्यायालय ने इस मामले से संबंधित स्वतः संज्ञान जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए पूर्व के आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के निर्देश दिए।
सुनवाई के दौरान न्यायमित्र अधिवक्ता डॉ. कार्तिकेय हरिगुप्ता ने न्यायालय को अवगत कराया कि सूखाताल झील के सौंदर्यीकरण कार्य में वैटलैंड (Wetland) नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि जुलाई 2024 में उच्च न्यायालय ने सौंदर्यीकरण कार्य पर लगी रोक हटाते हुए झील विकास प्राधिकरण (DDA) को तीन माह के भीतर सभी कार्य पूर्ण करने के आदेश दिए थे, परंतु अब तक प्राधिकरण ने न तो कार्य पूरा किया और न ही अदालत में स्थिति रिपोर्ट दाखिल की।

अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि “यह परियोजना नैनीताल की जीवनरेखा मानी जाने वाली सूखाताल झील से जुड़ी है, ऐसे में केवल औपचारिकता निभाना पर्याप्त नहीं।” न्यायालय ने निर्देश दिया कि डी.डी.ए. और संबंधित विभाग पूर्व आदेशों के अनुरूप सौंदर्यीकरण का वास्तविक कार्य पूरा करें और अनुपालन रिपोर्ट शीघ्र दाखिल करें।
गौरतलब है कि सूखाताल झील नैनीताल झील का प्रमुख जलस्रोत मानी जाती है। न्यायालय ने पहले भी इसे “सिटी का वाटर बैंक” बताते हुए इसके संरक्षण और वैज्ञानिक ढंग से सौंदर्यीकरण की आवश्यकता पर जोर दिया था। अब सभी की निगाहें इस बात पर हैं कि डी.डी.ए. मैदान पर कितनी तेजी से काम करता है और झील को उसके वास्तविक स्वरूप में वापस लाने में कितना समय लगता है।

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