
अल्मोड़ा: उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के भैंसियाछाना ब्लॉक स्थित ल्वेटा गांव में जोशीमठ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है। गांव के 35 मकानों में गहरी दरारें आ चुकी हैं, जिससे ग्रामीणों में भय का माहौल बना हुआ है। बीते एक महीने में चार मकान दरारों के कारण धराशायी हो चुके हैं, जिससे कई परिवारों के सिर से छत छिन गई है। हालात इतने गंभीर हो चुके हैं कि कई लोग टेंट में रहने को मजबूर हैं, जबकि कुछ ने अपने रिश्तेदारों के घरों में शरण ली है।
गांव के हालात भयावह, 350 लोगों पर मंडरा रहा खतरा
ल्वेटा गांव की कुल आबादी करीब 350 लोगों की है, जिनमें से अधिकांश लोग अब डर के साए में जी रहे हैं। गांव की पेयजल लाइन भी उखड़ गई है, जिससे पानी की समस्या भी विकराल रूप ले चुकी है। ग्रामीणों ने प्रशासन से तत्काल मदद की गुहार लगाई है। गुरुवार को ग्रामीणों का एक प्रतिनिधिमंडल भाजपा अनुसूचित मोर्चा के मंडल अध्यक्ष संतोष कुमार के नेतृत्व में जिलाधिकारी आलोक कुमार पांडेय से मिला और उन्हें गांव की भयावह स्थिति से अवगत कराया। ग्रामीणों ने बताया कि वर्ष 2010 में भी गांव में भूस्खलन के कारण कई मकानों में दरारें आ गई थीं और छह मकान पूरी तरह ध्वस्त हो गए थे। तब प्रशासन ने केवल तीन प्रभावित परिवारों को 1.20-1.20 लाख रुपये का मुआवजा दिया था, जो पर्याप्त नहीं था।
ग्रामीण बोले – हमारे पास ज़मीन है, लेकिन घर बनाने के पैसे नहीं
ग्रामीणों का कहना है कि उनके पास अन्यत्र मकान बनाने के लिए सुरक्षित भूमि तो है, लेकिन भवन निर्माण के लिए पर्याप्त धन नहीं है। वर्ष 2010 में जब आपदा प्रबंधन टीम ने गांव का निरीक्षण किया था, तब भी यह बताया गया था कि गांव भूस्खलन की चपेट में है। बावजूद इसके, कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
जिलाधिकारी ने दिए जांच के आदेश
डीएम आलोक कुमार पांडेय ने मामले की गंभीरता को देखते हुए एसडीएम को तत्काल गांव का निरीक्षण कर रिपोर्ट सौंपने के आदेश दिए हैं। प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि जल्द ही विशेषज्ञों की एक टीम गांव का भूगर्भीय सर्वेक्षण करेगी और प्रभावित परिवारों को उचित सहायता देने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
ग्रामीणों की मांग – तत्काल मदद दी जाए
ल्वेटा गांव के निवासी इस समय बेहद कठिन परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। उन्हें डर है कि अगर जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो बड़ा हादसा हो सकता है। ग्रामीणों ने सरकार से अपील की है कि उन्हें तत्काल राहत दी जाए और उनके पुनर्वास की उचित व्यवस्था की जाए। अब देखना यह होगा कि प्रशासन कितनी जल्दी इस संकट को हल करने की दिशा में ठोस कदम उठाता है।

