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“संविधान की आड़ में सत्ता का खेल खेलती रही कांग्रेस : अजय भट्ट का बड़ा हमला”…

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हल्द्वानी – भाजपा कुमाऊं संभाग कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में नैनीताल-ऊधमसिंह नगर लोकसभा सीट से सांसद अजय भट्ट ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने संविधान के साथ बार-बार खिलवाड़ कर उसे बदलना अपना विशेषाधिकार समझा है। पंडित नेहरू के कार्यकाल से ही यह सिलसिला शुरू हो गया था, जो इंदिरा गांधी के शासन में और भी खतरनाक रूप ले चुका था।

उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान में समय-समय पर बदलाव की व्यवस्था अनुच्छेद 368 के तहत की गई है और अब तक 106 संशोधन हो चुके हैं, लेकिन कई बार ये संशोधन केवल राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए किए गए। कांग्रेस शासन में 80 बार संविधान बदला गया, और केवल पहले 14 वर्षों में 17 बार संशोधन किए गए।

अजय भट्ट ने कहा कि इंदिरा गांधी के कार्यकाल में किया गया 42वां संविधान संशोधन इतना व्यापक था कि उसे ‘लघु संविधान’ तक कहा गया। इसमें प्रस्तावना में ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ जैसे शब्द जोड़ दिए गए, जिसे संविधान निर्माता आवश्यक नहीं मानते थे। उन्होंने आरोप लगाया कि इंदिरा गांधी के दौर में संविधान को 40 से अधिक बार संशोधित करने की कोशिश की गई थी।

उन्होंने कहा कि राजीव गांधी के शासन में भी कम से कम 11 बार संशोधन किए गए। शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को पलटने का निर्णय भी उसी काल का हिस्सा रहा।

अजय भट्ट ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर भी निशाना साधा और कहा कि वे लोकसभा चुनाव से अब तक संविधान की एक प्रति लेकर घूम रहे हैं, लेकिन उनके ही नेतृत्व में कांग्रेस ने कई बार संविधान के साथ छेड़छाड़ की।

उन्होंने बताया कि मनमोहन सिंह के दोनों कार्यकालों में भी सात बार संविधान में संशोधन हुए और उस दौरान राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष रहे या उनकी मां सोनिया गांधी पार्टी का नेतृत्व कर रही थीं।

भट्ट ने कहा कि कांग्रेस ने 1951 में ही पहले संविधान संशोधन के जरिए नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने का प्रयास किया, जबकि देश में पहला आम चुनाव तक नहीं हुआ था।

बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने भी 1954 में लाए गए चौथे संविधान संशोधन का विरोध किया था और कहा था कि मौलिक अधिकारों के साथ इस प्रकार का व्यवहार भविष्य में गंभीर परिणाम ला सकता है।

1975 में लाए गए 38वें संशोधन का उद्देश्य आपातकाल लगाने के निर्णय को ‘गैर-न्यायिक’ बनाना था। वहीं 42वें संशोधन ने संविधान की आत्मा को झकझोर दिया। इसमें लोकसभा का कार्यकाल छह साल कर दिया गया, और कानून की संवैधानिकता तय करने की शक्ति केवल सात न्यायाधीशों तक सीमित कर दी गई।

भट्ट ने कहा कि 41वां संशोधन जो अंततः निष्फल रहा, उसका उद्देश्य प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और राज्यपालों को उनके कार्यकाल में किए गए अपराधों से पूर्ण प्रतिरक्षा देना था।

उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी ने Article 356 का 50 बार दुरुपयोग कर चुनी हुई सरकारों को गिराया और 1973 में सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों की जगह जूनियर को मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया।

शाहबानो केस का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के हक में जो फैसला सुनाया था, उसे कांग्रेस सरकार ने तुष्टिकरण की राजनीति के तहत कानून बनाकर पलट दिया।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासन में राष्ट्रपति शासन लगाने की प्रवृत्ति चरम पर थी। अकेले इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 50 बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया।

भट्ट ने कहा कि 2003 में जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तब 91वां संविधान संशोधन करके ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस’ की अवधारणा को आगे बढ़ाया गया। इससे मंत्रिपरिषद के आकार पर नियंत्रण और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने जैसे कदम उठाए गए।

अंत में उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने जब भी सत्ता और संविधान में से किसी एक को चुनने का मौका पाया, उसने सत्ता को चुना। अब समय आ गया है कि हम संविधान के प्रति अपनी निष्ठा को दोहराएं और उसकी मूल आत्मा की रक्षा करें।

प्रेस वार्ता में जिलाध्यक्ष प्रताप बिष्ट, मेयर गजराज सिंह बिष्ट, प्रदेश मीडिया प्रभारी चंदन बिष्ट, महामंत्री रंजन बर्गली और नवीन भट्ट मौजूद रहे।

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