उत्तराखण्ड हल्द्वानी

दूसरों के भार उठाने वालों को अपने पेट के लिए भोजन जुटाना मुष्किल-रिक्शा चालकों ने की बयां अपनी पीड़ा

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हल्द्वानी। यह दुनिया का एक बड़ा अजीबोगरीब नियम है कि यहां जो आदमी दूसरों का भार उठाता है लेकिन उसके दो वक्त का निवाला जुटाना मुश्किल हो जाता है। ऐसा ही कुछ यहां भी देखने को मिल रहा है। कोरोना काल के दौरान जहां अच्छे खासे वेतन पाने वाले लोगों को भी अपने दो वक्त की रोटी के लिए मारामारी करनी पड़ रही है वहीं मात्र दो चार सौ की दिहाड़ी कमाने वाले रिक्शा चालक अपनी जीवन की गाड़ी कितनी कठिनाई से खींचते होंगे, इसका अन्दाजा लगाना मुश्किल है। ज्ञात हो कि कोरोना काल के दौरान पिछले एक साल से ही आम लोगों का जीना बेहाल हो गया है। विशेषकर मेहनतकश लोगों में शुमार अपने लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ करने में परेशानी महसूस कर रहे हैं। इनमें रिक्शा चालक भी शामिल हैं।

पीलीभीत के बीसलपुर के रहने वाले रिक्शा चालक रमेश कुमार यहां पिछले सात साल से रिक्शा चला रहे हैं। उनका कहना है कि पिछले एक साल से आर्थिक रूप से इतना परेशान हैं कि उनके दो जून के लिए भोजन जुटाना मुश्किल हो गया है। वे पिछले चार महीने से अपने बच्चों को मुश्किल से दो हजार से अधिक महीना नहीं भेज पा रहे हैं।

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ऐसा ही कुछ कहना है रामपुर के फैजान का। मिलक रामपुर निवारी फैजान यहां पिछले दस सालों से रिक्शा चला रहे हैं। उनका कहना है कि पहले कमाई सही हो जाती थी लेकिन कोरोना काल के दौरान से जो आर्थिक मुश्किलात उनकी सामने आयी, वो आज भी जारी हैं। उनका कहना है कि एक तो पहले से ही काम कम चल रहा था अब स्थिति डांवाडोल हो चली है।

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वहीं बहेड़ी के लाल सिंह भी अपना दर्द बयां करते हुए कहते हैं कि वे पिछले 11 सालों से यहां पर रिक्शा चलाने का काम कर रहे हैं। हालाकि टुकटुक आदि वाहन आने से उनके काम पर असर पड़ने लग गया था लेकिन कोरोना आते ही उनके काम पर गहरा असर पड़ा। लगभग एक साल से उनकी आर्थिक स्थिति डांवाडोल है। पहले उनके बच्चे यहीं रहते थे लेकिन अब उन्होंने उन्हें गांव छोड़ दिया है। उनका कहना है कि हमें कोई राहत भी नहीं मिली। वे दिन के समय खाना इधर-उधर ही खा लेते हैं और शाम के समय खिचड़ी खाकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं।

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बदायूं के दाताराम यहां पिछले सात सालों से रिक्शा चला रहे हैं और पहले उनकी कमाई भी ठीक-ठाक हो जाया करती थी। पिछले एक साल से उनके समक्ष रोजी रोटी का संकट भी आ गया है। उनका कहना है कि कोरोना के बाद उनक परिजनों के समक्ष दो जून की रोटी जुटाना कठिन हो गया है। उनका कहना है कि हम उम्र के इस मोड़ में आ गये हैं और कोई दूसरा काम भी नहीं हो सकता है। अब मन में यह सवाल बार-बार गूंजता है कि है कि जीवनयापन कैसे होगा।

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