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कृष्णा अस्पताल उद्घाटन से पहले विवादों में मासूम की मौत के लिए आखिर कौन जिम्मेदार

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बाल रोग विशेषज्ञ डॉ पारस अग्रवाल और अस्पताल स्टाफ पर इलाज के दौरान लापरवाही बरतने के लगें आरोप

एस एस पी के निर्देश पर पुलिस ने लिया मामले का संज्ञान

मासूम के परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन पर लगाएं लापरवाही बरतने के आरोप

रुद्रपुर-(एम् सलीम खान) शहर की डाक्टर कालौनी स्थित कृष्णा अस्पताल उद्घाटन से पहले ही विवादों में घिर गया है। यहां अस्पताल जिला चिकित्सालय में तैनात डा गौरव अग्रवाल की का है। डा गौरव अग्रवाल खुद ही इस विवादित अस्पताल के प्रबंध निदेशक है। आपको बता दें कि की डा गौरव अग्रवाल इससे पूर्व जिला अस्पताल में तैनात थे।डा गौरव अग्रवाल कोविड काल के दौरान पंडित रामसुमेर शुक्ला मेडिकल कॉलेज में बतौर कोविड प्रभारी के रूप में तैनात थे।उस दौरान भी कई मरीजों के साथ लापरवाही बरतने के उन पर आरोप लगाएं गए थे।

मृतक के परिजनों ने एक बार नहीं बल्कि बार बार डा गौरव अग्रवाल पर लापरवाही बरतने के आरोप लगाएं थे।हाल ही में उन्होंने सरकारी चिकित्सक के पद से इस्तीफा दिया। जिसके बाद उन्होंने कृष्णा अस्पताल के नाम से स्वयं का अस्पताल संचालित किया। इस अस्पताल में डा गौरव अग्रवाल बतौर फिजिशियन के रूप में तैनात हैं। वही उनके भाई डा पारस अग्रवाल बाल रोग विशेषज्ञ के रूप में तैनात हैं। बीती 27 मार्च को शहर की प्रीत विहार कालोनी निवासी राजकुमारी पत्नी रमेश चंद्र ने सुबह 9 बजे अपनी एक साल तीन दिन की मासूम बच्ची पारिधी को कृष्णा अस्पताल में भर्ती कराया था। जहां डा पारस अग्रवाल ने बताया कि बच्ची को सास लेने में दिक्कत आ रही है।

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इस बात की जानकारी होने ने मासूम की मां राजकुमारी और पिता रमेश चंद्र ने अपनी मासूम बच्ची को कृष्णा अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया।जिसका उपचार डॉ पारस अग्रवाल कर रहे थे। वही मासूम को भर्ती करने के बाद उसके परिजनों को उससे मिलने पर रोक लगा दी गई।बच्ची की मां राजकुमारी और पिता रमेश चंद्र ने बताया कि उपचार के दौरान मासूम पारिधी के नाज़ुक शरीर में वहां तैनात मेडिकल स्टाफ ने सुबह नौ बजे से दोपहर तीन बजे तक सौ से अधिक हाई-लेवल इंजेक्शन लगाए। वही बच्ची की नसें न मिलने पर अस्पताल स्टाफ ने बेरेहमी से उसके साथ हैवानियत दिखाते हुए उल्टी सीधी जगह इंजेक्शन लगा दिए।जब परिजनों ने बच्ची से मिलने की बात कही तो वहां मौजूद अस्पताल स्टाफ ने साफ इंकार कर दिया।

वही परिजनों का कहना है कि इलाज के नाम पर डा पारस अग्रवाल और अस्पताल स्टाफ उनसे रकम जमा करवाते रहे। अस्पताल स्टाफ ने तीन बजे तक मासूम बच्ची के परिजनों से हजारों रुपए जमा कराए। वही उन्हें कोई रसीद भी नहीं दी।तीन बजे अस्पताल स्टाफ ने बताया कि उनकी मासूम बच्ची की मौत हो गई।जिस पर पूरे अस्पताल में कोहराम मच गया। वही मासूम बच्ची के परिजनों ने आरोप लगाया कि अस्पताल स्टाफ ने उनसे इलाज के नाम पर पाचस से साठ हजार रुपए जमा कराए, और उसकी कोई रसीद भी नहीं दी। वही इस मामले की जानकारी किसी व्यक्ति ने मीडिया को दे दी।जिस पर मीडिया कर्मी भी अस्पताल जा पहुंचे, और उन्होंने वहां मौजूद स्टाफ से जानकारी मांगी तो किसी ने कुछ भी कहने से इन्कार कर दिया।

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वही करीब डेढ़ घंटे तक अस्पताल का कोई भी उच्च अधिकारी मीडिया के सामने नहीं आया।जिस पर वरिष्ठ पत्रकार एम सलीम खान ने इस मामले की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डा मंजूनाथ टीसी को फोन पर दी।एस एस पी के निर्देश पर बाजार चौकी प्रभारी संदीप शर्मा और आदर्श कालोनी पुलिस चौकी के प्रभारी सुरेंद्र प्रताप सिंह मौके पर पहुंचे, और उन्होंने पीड़ित परिवार से सारी जानकारी ली। जिसके बाद पुलिस ने अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ पारस अग्रवाल और फिजिशियन डॉ गौरव अग्रवाल से भी पूछताछ की और उपचार से संबंधित सभी रिकार्ड अपने कब्जे में ले लिए। वही मासूम पारिधी के दादा रामपाल चन्द्र और दादी भगवान देवी ने बताया कि जब हमने अस्पताल स्टाफ से जबरदस्त बच्ची से मिलने की बात कही तो उन्होंने पुलिस बुलाने की धमकी दी। वही उन्होंने आरोप लगाया कि अस्पताल में काम करना वाला स्टाफ भी पूरी तरह लापरवाही बरत रहा था।

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वही एक अन्य महिला ने बताया कि उसी दिन सुबह भी इलाज करने करने आए व्यक्ति की मौत हो गई थी।जिस खामोशी से अस्पताल प्रबंधन ने एंबुलेंस से उसके घर उसका शव भेज दिया। वही इस मामले में उत्तराखंड के स्वास्थ्य महकमे पर आम जनता सवाल उठा रही है। वहां मौजूद लोगों ने बताया कि इस अस्पताल में जो भी अति गंभीर व्यक्ति इलाज करने आया, उसकी अक्सर मौत हो जाती है। ऐसे में स्वास्थ्य महकमे ने किस तरह इस अस्पताल को संचालित करने की अनुमति दी,यह सवाल उठना लाजिमी है। हैरानी इस बात की है कि इस मामले की शिकायत स्वास्थ्य विभाग से भी की गई थी। लेकिन स्वास्थ्य महकमे का कोई आला अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा। अपने कर्तव्य की पूर्ति करने वाले यह चिकित्सक महज पैसे को महत्व देते हैं। देखना यह है कि पुलिस पीड़ित परिवार को इंसाफ दिला सकेंगी,यह यह संगीन मामला भी महज कागजों के बोझ तले दब कर रह जाएगा।

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