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सर्वोच्च न्यायालय ने देशद्रोह कानून पर लगाईं रोक…..

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शीर्ष अदालत ने पूर्व में दर्ज किए गए मामलों में भी की गई कार्रवाई पर रोक लगाने के दिए आदेश

केंद्र सरकार ने कहा कानून रहें पर जांच के बाद दर्ज की रिपोर्ट

नई दिल्ली-(एम सलीम खान) एजेंसी सर्वोच्च न्यायालय ने देशद्रोह कानून पर रोक लगा दी है। देश में अंग्रेजों के जमाने से चलें आ रहे देशद्रोह कानून को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त फैसला दिया है। अदालत ने आदेश दिया है कि जब तक आईपीसी की धारा 124 ए की री एग्जामिन प्रोसेस पूरी नहीं हो जाती तब तक इसके तहत कोई मामला दर्ज नहीं होगा। अदालत ने पहले ही दर्ज मामलों में भी कार्रवाई पर रोक लगा दी है।इस धारा में जेल में निरुद्ध आरोपी भी जमानत के लिए अपील कर सकते हैं।

 

सीजेआई एन वी रमना,जास्टिस सूर्यकांत त्रिपाठी और जास्टिस हिमा कोहली की खंडपीठ ने यह भी आदेश दिया है कि इसके बाद भी यदि कोई नया मामला दर्ज किया जाता है तो पीड़ित पक्ष अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। निचली अदालतों से भी अपील है वे पारित आदेश को ध्यान में रखते हुए मांगी गई राहत की जांच करें। सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत में जानकारी दी है कि देशद्रोह कानून के तहत देशभर की जेलों में 13 हजार लोग आज तक बंद हैं।

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इसके पहले सरकार की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आईपीसी की धारा 124 ए पर रोक न लगाईं जाएं। हालांकि उन्होंने यह प्रस्ताव दिया है कि भविष्य में इस कानून से राहत एफ आई आर पुलिस अधीक्षक की जांच और सहमति के बाद ही दर्ज की जाए। केंद्र सरकार ने कहा कि जहां तक लंबित मामलों का सवाल है, संबंधित अदालतों को आरोपियों की जमानत पर तत्काल से विचार करने के निर्देश दिए जाएं। गौरतलब है कि देशद्रोह के मामलों में धारा 124 ए से जुड़ी दस से ज्यादा याचिकाओं को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।

 

केंद्र सरकार ने कहा सजेय अपराध को दर्ज होने से नहीं रोका जा सकता है। कानून के प्रभाव पर रोक लगना सही नहीं हो सकता, इसलिए जांच के लिए एक जिम्मेदार अधिकारी होना चाहिए। मामला तभी दर्ज हो जब वह कानून के तहत तय मानकों के अनुरूप हों। सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि देशद्रोह के लंबित मामलों की गंभीरता का पता नहीं है। इनमें शाय़द आतंकी या मनी लांड्रिंग का एंगल है। कोर्ट विचार विमर्श करें, और हमें उनके फैसलों का इंतजार करना चाहिए। केंद्र ने दलील भी दी कि अदालत की संविधान पीठ द्वारा बरकरार रखें गये देशद्रोह के प्रावधानों पर रोक लगाने के लिए आदेश देना सही तरीका नहीं हो सकता है।

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कानून मंत्री रिजीजू बोलें सभी को लक्ष्मण रेखा का सामना करना चाहिए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर केन्द्रीय कानून मंत्री ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। कानून मंत्री किरन रिजीजू ने कहा हम अदालत और इसकी स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं। लेकिन यह एक लक्ष्मण रेखा है।जिसका सम्मान सभी को अंगों द्वारा किए जाना चाहिए। कानून मंत्री ने कहा कि हमने अपनी स्थिति बहुत स्पष्ट कर दी है और प्रधानमंत्री मोदी के इरादे के बारे में अदालत को सूचित किया है। इससे पहले केंद्र सरकार ने बुधवार को 1870 में बने यानी 52 साल पुराने राजद्रोह कानून आईपीसी की धारा 124 ए पर सर्वोच्च न्यायालय में जवाब दायर किया।

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इसके बाद अदालत ने केंद्र को इस इस कानून के प्रावधानों पर फिर से विचार करने की अनुमति दी। करीब पांच पक्षों ने सर्वोच्च न्यायालय में दस याचिकाएं दायर की थी एडिट गिल्स आफ इंडिया तृणमूल सांसद महुआ मोइबा सहित पांच पक्षों की ओर से देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका दायर की गई थी। मामले में याचिकाकर्ताओं का कहना था कि आज के समय में इस कानून की जरूरत नहीं है।इस मामले की सुनवाई सीजेआई एन वी रमना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की खंडपीठ कर रही थी।इस खंडपीठ में जास्टिस सूर्यकांत त्रिपाठी और जास्टिस हिमा कोहली भी शामिल हैं।

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