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रंगो और आपसी भाईचारे का पर्व होली के त्यौहार ने अब ले लिया आधुनिकता का रूप…….

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होली के बलगुरियों पर आधुनिकता का बोलबाला, होली के त्यौहार पर आधुनिकता का खुमार……

काशीपुर-(सुनील शर्मा) काशीपुर में रंगो और आपसी भाईचारे का पर्व होली के त्यौहार ने अब आधुनिकता का रूप ले लिया है। खाने पीने की चीजों से लेकर पिचकारी आदि के साथ-साथ गोबर होलिका दहन के समय पूजी जाने वाली गोबर से बनी बलगुरिया जिसे कि अलग अलग क्षेत्रों में बड़कुल्ले, बुलबुले आदि  अलग अलग नामों से लोग जानते हैं, उसका भी प्रचलन आधुनिकता के दौर में बदल गया है।

 

आधुनिकता की दौड़ में आज भी गोबर से होली के 10 दिन पहले बलगुरिया, बुलबुले और बड़कुल्ला बनाने की प्राचीन परंपरा कायम है। फाल्गुन और होली के गीत गाकर महिलाएं इन्हें बनाती थीं। फाल्गुन मास में होली का पर्व मनाया जाता है। इसमें घर-घर में होलिका का दहन किया जाता है। इस होलिका दहन के लिए महिलाएं अमावस्या के बाद शुल्क पक्ष की दूज यानी कि फुलरिया दूज से गाय के गोबर से बुलबुले बनाने का काम करती थीं।

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काशीपुर में पहले महिलाएं अपने घरों में इसे बनाती थीं लेकिन अब अन्य सामानों की तरह यह भी ग्राहकों के लिए उपलब्ध हैं। बीते वर्षों में महिलाओं की टोलियां सुबह में एकत्रित होती थी और होली के गीत गाते हुए गुलरी आदि बनाती दिखती थीं। अब ऐसा नहीं है। समय का अभाव है और आज की कुछ महिलाएं इन सबसे गुरेज करती हैं। यही कारण है कि अब शहर से लेकर देहात में गोबर के बुलबुले होली के 10 दिन पहले ही बना लेते हैं और कुछ जगह उसकी बिक्री होना शुरू हो जाती है।

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₹10 से लेकर ₹20 किलो तक यह बिकते हैं। लोगों द्वारा इनका ढेर लगाकर या फिर सुतली में पिरोकर इनकी माला बनती है और होली की पूजा कर इस माला को चढ़ाया जाता है। स्थानीय ग्राहकों के मुताबिक बीते वर्षों में मौसम खराबी के चलते इन्हें बनाने व सुखाने से बचने के लिए अब लोगों में इनका क्रेज हो गया है और लोग तमाम झंझटों से बचने के लिए इनको अभी से खरीद रहे हैं। मां बाल सुंदरी देवी मंदिर के मुख्य पुजारी पंडा विकास अग्निहोत्री के मुताबिक हिंदू धर्म में गाय को पूजनीय माना जाता है

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और गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। पीछे के हिस्से को यम का स्थान माना जाता है और गाय का गोबर इसी स्थान से मिलता है। होलिका दहन में इसके इस्तेमाल से कुंडली में अकाल मृत्यु जैसे या कोई भी बीमारी से जुड़े दोष दूर हो जाते हैं। इसी वजह से पूजा-पाठ में भी गोबर के उपलों का इस्तेमाल होता है। किसी भी स्थान पर गोबर के उपले जलाने से घर में माता लक्ष्मी का वास होता है और होलिका की अग्नि में भी जब इन्हें जलाते हैं तो रोग-दोष मुक्त होते हैं और आर्थिक स्थिति ठीक हो सकती है!

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