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प्रेरणात्मक( शिक्षाप्रद) “और मुझे कवियत्री बना दिया “…….

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“कब किसके वाक्य या कथन, शब्द, या  सलाह, या यूं कहें कि किसी के द्वारा हमें एक सही दिशा में सुझाए  गये या बताये गये नेक विचार कब हमारे लिए प्रेरणा बन जाए ,और हमारा जीवन बदल दे यह सब संयोग पर निर्भर करता है” जितना भी घटित होता है सब कुछ परम सत्ता असीम शक्ति द्वारा पूर्व निर्धारित होता है” एक बालक जब जन्म लेता है तो उसका भाग्य निर्धारण ऊपर से ही होकर आता है और उसी प्रकार उसके लिए परिस्थितियां बनती जाती हैं

 

कभी सम कभी विषम| इन्हीं विषम  परिस्थितियों से उसे उबर कर सम परिस्थितियों में आने के लिए कोई एक ऐसा प्रेरणादायक पात्र उसके लिए सारी सुविधाएं उपलब्ध कर देता है जिसके सहारे वह बालक सारी बाधाओं को पार कर एक कीर्तिमान स्थापित करता है “कोई आवश्यक नहीं है कि हमें प्रेरणा देने वाला शिक्षित हो या बहुत बड़ा ज्ञानी हो कभी-कभी बिना पढ़े लिखे लोग भी हमारे लिए प्रेरणा स्रोत बन जाते हैं पहले के जमाने में स्त्रियां अधिकतर पढ़ी-लिखी नहीं रहती थी

 

फिर भी वह अपने पुत्र या पुत्रियों को प्रेरित कर उनके लिए प्रेरणा स्रोत बन कर ,उनके जीवन का मार्गदर्शन करती थी और उनके पुत्र  या पुत्रियां अपना अच्छा प्रदर्शन  करके इतिहास में अमर हो गए और देश दुनिया में हमेशा के लिए एक स्तंभ के रूप में पूजनीय हो गए  “आपकी जिंदगी कब किस की प्रेरणा से सन्मार्ग पर चल पड़े यह कहा नहीं जा सकता कब किसकी बातें आपके लिए एक अच्छी बात बनकर आपके जीवन में उतर जाए यह कहा नहीं जा सकता  मुझे याद है कि कि मैंने लिखना कब से शुरू किया मैं एक दिन यूं ही बैठी कुर्सी पर घर के भीतर से बाहर बारिश की बूंदों को गिरते हुए देख रही थी

 

मेरे मन में अचानक एक अंदर की  बच्ची रूपी कवियत्री जाग उठी और यूं ही कुछ “कविता के शब्द  फूट पडे़ और बगल में ही लेटर पैड और पेंन पड़ी हुई थी| जिसे उठाकर मैंने यूं ही लिखना शुरु कर दिया……”चलो आज बचपन को फिर से दोहराते हैं बारिशों के समंदर में कागज की नाव तैराते हैं बस फिर क्या था …उसके बाद आगे की लाइनें स्वत: बनती चली गई और बाहर बारिश झमाझम  होती रही और मैं लिखती रही मैं लिखने में इतना लीन हो गई थी, कि जब मेरी लेखनी की तंद्रा टूटी तो पूरी एक कविता बन चुकी थी इस कविता को मैंने यूं ही मोबाइल पर फोटो खींचकर जब अपने व्हाट्सएप ग्रुप पर डाला तो सभी को आश्चर्य हुआ कि “अरे यह कविता तो बहुत सुंदर है”

 

सबने पढा़, कुछ ने सराहा और कुछ जो हमारे विरोधी थोड़े ईर्शालू  प्रवृत्ति वाले थे, उन्होंने कहा कहां से कॉपी किया, मैं सफाई देती रही कि मैंने अपने मन से ही लिखा है, किंतु अयोग्य व्यक्ति से बहस व्यर्थ समझ,मै  यूं ही लिखती रही इसके पूर्व भी मैं जब विश्वविद्यालय में पढ़ती थी तो दो चार लाइने लिख कर डायरी में सहेज लेती थी, कभी कभी कुछ शेर शायरी भी अपनी डायरी में चुपके से लिखा करती थी किंतु वह मेरी पहली जीवन की पहली कविता थी, जिससे मैंने लिखना शुरू किया कुछ विरोधियों ने तो इसका जमकर विरोध किया,

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उत्साह बढा़नें के बजाय कई कमियां निकालनी शुरू की और वहीं कुछ थे जो मेरे लिए अच्छी भावना रखते थे उन्होंने सराहा पढा़ और कविता का कविता का आनंद उठाया और कहा बहुत अच्छा लिखती हो|”गुफ्तगूं साहित्य के संस्थापक श्री इम्तियाज़ गाजी  जी ने शुभकामनाएं देते हुए कि बहुत अच्छा और रोचक लिखती हो बहुत ऊपर तक जाओगी ” संस्थापक जी के यह शब्द माँ सरस्वती के वरदान बन मेरा उत्साह बढा़नें में सहायक सिद्ध हुए फिर मेरी कलम जाग गई मुझे लिखना अच्छा लगने लगा मैं अक्सर काम करते-करते मन में सोचती रहती जो भाव आते जाते जाते उनको एक कागज पर लिख लेती |

 

इसी बीच में यह जान गई थी कि कौन मुझसे प्रतिस्पर्धा रखता है या किसी को किस को मेरी उन्नति पसंद है किसको जो  ईर्ष्या रखता है  या मैं या मेरी लेखनी उसे नहीं अच्छी लगती या मेरे विचार नहीं अच्छे लगते या कौन ऐसा विरोधी है जो मुझे आगे नहीं बढ़ने देना चाहता या किसको मेरी यह लेखनी हजम नहीं हो रही है मैं बिना किसी के की परवाह किए, अक्सर यूं ही दो चार  कविताएं अवश्य लिखती | कभी कभी कोई भी ज्वलंत विषय होता उस पर लिखती कभी कोई मेरे ऊपर कोई संजोग से किसी ने व्यंग बाण छोड़े तो भी मैं लिख लेती किसी ने स्नेह जताया तो भी लिख लेती

 

किसी ने मेरी बड़ाई की तो भी  मेरी कलम चल ही जाती अपनी रचनाएँ मैं सखियों के ग्रुप में भी मैं डालती रहती कुछ समय बाद मुझे फेसबुक पर सर्फिंग के दौरान “साहित्य संगम संस्थान” दिखा, जहां पर मैंने जब सर्च किया तो देखा कि लोग वहां लेखनी चलाते हैं लिखते हैं और बहुत से कवि गण लोग उत्साह भी बढ़ाते हैं और बहुत से लोग लिखना सिखाते हैं तब तक मैं थोड़ा बहुत शेर शायरी टूटे-फूटे लफ्जों में और बहुत कुछ लिख चुकी थी, जो लगभग एक छपने लायक हो गया था हमारे रिश्तेदारों ने भाई बंधुओं ने जो मेरे हितैषी थे

 

उन्होंने कहा यह सब छपवा लो मुझे लगता था यह काम कितना दूरह  और अत्यंत कठिन है मैं कैसे करूंगी मुझे इस विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं था जब मैं साहित्य संगम संस्थान के संपर्क में आई मैंने फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी मुझे एक्सेप्ट किया गया और यहां पर मैंने देखा कि बहुत अच्छा माहौल है और साहित्य के लिए सभी समर्पित हैं और इसके अध्यक्ष श्री राजवीर मंत्री जी थे, सहअध्यक्षा  सुश्रीसौम्या मिश्रा जी थीं प्रबंधिका आदरणीया छाया सक्सेना प्रभु जी  एवं सचिव श्री तरुण जी थे, और अनुशासन अधिकारी आशीष पांडे जिद्दी जी थे,

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अन्य किसी अधिकारियों के विषय में मैं नहीं जानती थी| क्योंकि मैं सबसे  परिचित नहीं थी 2017 में मैं साहित्य संगम संस्थान के  ह्वाट्स अप  एवं फेसबुक पटल से जुड़ गई, मेरे द्वारा दैनिक लेखन होने लगा, दो चार बार तो मैं केवल पढ़ कर समझती रहती रहती| एक दो रोज में मुझे पटल के  नियम और  लेखन मर्म सभी समझ में आ गए , जो विषय दिया जाता उस पर लोग लेखनी चलाते उस पर विधा भी दी जाती है जिसमें  लेखनी चलानीं होती,  एक दिन मैंने यूं ही अपने विचार पटल पर लिख डाले विषय काल समाप्त हो चुका था

 

शाम के 7:00 बज रहे थे मेरे विचार यूं ही दो चार लाइनों के लिखे जो पटल पर प्रेषित हुए उसे पढ़कर सभी ने बहुत सराहा सब ने कहा बहुत अच्छा विचार है मेरा उत्साह बढ़ा ,अगले दिन मैंने उस विषय को देखा कि जो पटल पर दिया गया था मैंने भी उसमें लिखा में पहला संस्मरण  रूप में  लिखने  हेतु विषय दिया गया था जिस पर मैंने  लिखकर पटल पर  प्रेषित किया जिसे पढ़कर सभी ने वाह-वाह किया सभी ने बधाई दी कुछ लोगों ने शानदार टिप्पणी भी की|  एक-एक गतिविधि पढ़कर मेरा उत्साह बढ़ता गया और शाम को उसकी जब समीक्षा होती थी विषय काल के बाद तक समीक्षा में मुझे बहुत सराहा गया

 

और श्रेष्ठ रचनाकार का प्रमाण पत्र मिला, यह जीवन की पहली अमूल्य धरोहर थी, मेरी रचना  पढ़कर संस्थान के अध्यक्ष श्री राजवीर जी  बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा आप बहुत सुंदर लिखती हैं , “आपकी  लेखनी में माँ शारदे का वास है” ध्यक्ष जी का यह शब्द”यह शब्द मेरे अंतर तक उर्जा का संचार कर मुझे मुझे लिखने की प्रेरणा दे गया “मुझे मेरे लेखनी पर बधाईयाँ मिलने लगी “मुझे लगा कि मेरी लेखनी को प्राण मिल गए मेरे प्रेरणा स्रोत के रूप में श्री राजवीर मंत्री जी ने एक लेखिका को जन्म दे दिया था “और फिर लिखते हुए मैं काव्य की विधाएं भी सीख दी गई काव्य में इतना मुझे रुचि नहीं थी

 

जितना मुझे गद्य लिखना अच्छा लगता था श्री राजवीर मंत्री जी ने  जब मुझे “गद्य गोविंदे” की उपाधि से नवाजा मेरे अंदर तो जैसे उत्साह का सागर हिलोरे मारने लगा और मैं धीरे-धीरे अपने लेखनी को गति देने लगी अब नियमित तो अब नहीं लिख पाती हूं क्योंकि दो बेटे हैं जिनके कैरियर के प्रति मैं बहुत सावधान और सजग  हूं मैं उनको और अपने घर को पूरा पूरा समय देती हूं ताकि मेरी वजह से किसी को कोई परेशानी ना हो या किसी को कोई नुकसान ना हो समय निकाल कर मैं साहित्य संगम संस्थान में जो भी जिम्मेदारियां होती है

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उनको अवश्य पूरा करती हूं मुझे याद है कि श्री राजवीर मंत्री जी के यह शब्द मेरे लिए एक प्रेरणा बनकर और मुझे गद्य गोविंदे की संज्ञा देकर  मेरे गुरु श्रेष्ठ बन गए कहते हैं कि “आपके सुनहरे जीवन की शुरुआत कहीं से भी  आपकी किसी भी उम्र से शुरू हो सकती है|” साधारण सा जीवन जीते हुए मैं मुझे लेखिका की संज्ञा या कवित्री  का मान  साहित्य संगम संस्थान में ही आकर मिला संस्थान का  जब पहला  साहित्य समारोह लखनऊ में मेरे ही घर के पास में  ही हुआ,तो मैं इसका हिस्सा बनी और वहां पर मैं प्रतिष्ठित कवियों से मिली मुझे बहुत प्रसन्नता हुई,

 

उसी समारोह के दौरान मेरी मुलाकात  साहित्यकार नवीन तिवारी अथर्व जी से हुई साहित्यिक समारोह कैसा होगा यह कैसी तैयारियां चल रही है इसका जायजा लेने के लिए जब मैं दिन में (अपना नैतिक कर्तव्य समझते हुए क्योंकि दूर-दूर से कई प्रांतों के कभी गण पधारे थे अतः) मैं दोपहर के समय अपने  ज्येष्ठ पुत्र के साथ समारोह स्थल पर  गई तो वहां पर मैंने देखा कि दो या तीन कवि गण  ट्रेन  द्वारा आकर वहाँ विश्रामालय में विश्राम कर रहे थे मैंने उनसे उनका कुशलक्षेम जानने और उनका परिचय लिया

 

और उनसे चाय पानी वगैरह नाश्ता के लिए निवेदन किया तो उन लोगों ने कहा कि मैंने हम लोगों ने सब कर लिया है,कवि वृंद बड़े प्रसन्न हुए उसमें श्री नवीन तिवारी अथर्व जी बहुत ही सहृदय व्यक्ति थे आज वह दुनिया में नहीं है वो जीवन के अंत तक साहित्य सेवा  करते रहे कर्क रोग से ग्रसित होकर वह अपने पल-पल की खबर लिखते रहे कहीं न कहीं वह मेरे साहित्यिक गुरु भी थे मैं अक्सर अपनी रचनाएं लिखकर उन्हें संशोधन हेतु उनके व्हाट्सएप पर भेज देती थी, आदरणीय अथर्व जी संशोधित करके मुझे बताते की क्या कमी है

 

या कहां त्रुटि हो रही है इस प्रकार से मेरे दूसरे प्रेरणा स्रोत या दूसरे गुरु श्री नवीन तिवारी अथर्व जी थे इस पटल पर प्रेरणा स्रोत के रूप में संस्मरण विधा पर लिखना है और इस विषय पर सभी साहित्यकारों को अपनी कलम चलानी है, तो आइए कुछ ऐसा लिखें और  ऐसा रखें जो पहले कभी रचा न  गया हो ,और आपके जीवन में आपको किस से प्रेरणा मिली और आप उसमें कितने सफल हुए , आपके लिए प्रेरणा स्रोत के रूप में किसने आपके जीवन में कदम रखा यह अपनी लेखनी से बताएं और संस्मरण को पुनः याद करके इस पटल को साकार करें

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