उत्तराखण्ड ज़रा हटके नैनीताल

 कई देशों में बड़े उल्लास से मनाया जाता है यह त्यौहार वसंत पञ्चमी…..

ख़बर शेयर करें -

ऋतु परिवर्तन का त्यौहार है वसंत पञ्चमी…..

नैनीताल- वसंत पञ्चमी जिसे  पंचमी भी कहते है ऋतु परिवर्तन का त्यौहार है। इस दिन विद्या ,बुद्धि ,वाणी की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पर्व पूर्वी , पश्चिमी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल सहीत  कई देशों में बड़े उल्लास से मनाया जाता है। इस पर्व में पीले वस्त्र धारण करते है ।वर्ष को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत को सबसे खुशनुमा मौसम माना जाता है । जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का फूल मानो सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर मांजर (बौर) आ जाता और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। भर-भर भंवरे भंवराने लगते। वसंत ऋतु का स्वागत माघ महीने के पाँचवे दिन किया जाता है जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा भी की जाती है ।

यह भी पढ़ें 👉  गुलाबी शहर का भ्रमण कर खुशी खुशी गुलाबी चेहरों के साथ लौटे नवयुग के छात्र

 

मां सरस्वती का प्रिय रंग पीला है जो ज्ञान ,खुशी ,उम्मीद , आत्मविश्वास ,ऊर्जा का प्रतीक है इसलिए, उनकी मूर्तियों को उनके सम्मान में पारंपरिक पीले वस्त्र, सामान और फूल पहनाए जाते हैं। मान्यता अनुसार इस दिन ज्ञान, विद्या, वाणी, संगीत और कला की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती का जन्म हुआ था ।इस वर्ष बसंत पंचम  वृहस्पतिवार को निश्चित है ऋतु वसंत के आगमन पर सर्दी कम हो जाती है, मौसम सुहावना हो जाता है, पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं, आम के पेड़ बौरों से लद जाते हैं और खेत सरसों के फूलों से भरे पीले दिखाई देते हैं I अतः राग रंग और उत्सव मनाने के लिए यह ऋतु सर्वश्रेष्ठ मानी गई है और इसे ऋतुराज कहा गया है।

 

भारतीय पंचांग में छ: ऋतुएं मानी गई हैं जिसमें वसंत को ‘ऋतुओं का राजा’ कहा जाता है। यह त्योहार फूलों के खिलने और नई फसल के आने का त्योहार है।माना जाता है इस दिन वीणावादिनी, हंस पर विराजमान माता सरस्वती मनुष्य के जीवन में छाए अज्ञानता को मिटाकर उन्हें ज्ञान और बुद्धि का उपहार देकर उनका कल्याण करती है। उन्हें शारदा,वीणावादिनी, बागीश्वरी, भगवती और वाग्देवी आदि नामों से भी जाना जाता है।इस दिन नई कॉपी, पुस्तकें, पेन और अन्य पूजन सामग्री माता के सामने रखकर माता सरस्वती का विधिवत पूजन किया जाता है। तत्पश्चात मौली, मौसमी फल, पुष्प, धूप, दीप, मिठाई, वस्त्र आदि वस्तुएं मां के चरणों में अर्पित करके इस पर्व को मनाया जाता हैं।

यह भी पढ़ें 👉  किच्छा विधानसभा क्षेत्र के अन्तर्गत शातिंपुरी नंबर चार में इन दिनों तेजी से फल-फूल रहा है अवैध खनन का कार्य…….

 

सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्मा जी ने मनुष्य और जीव-जंतु योनि की रचना की। इसी बीच उन्हें महसूस किया सभी जगह सन्नाटा छाया है। इस पर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का जिससे चार हाथों वाली एक स्त्री, उत्पन्न हुई जिसके एक हाथ में वीणा थी ब्रह्मा जी ने वीणावादन का अनुरोध किया जिस पर देवी ने वीणा का मधुर नाद किया। जिस पर संसार के समस्त जीव-जंतुओं में वाणी और जल धारा कोलाहल करने लगी और हवा सरसराहट करने लगी। तब ब्रह्मा जी ने उस देवी को ‘वाणी की देवी सरस्वती’ का नाम दिया।

यह भी पढ़ें 👉  डी०एस०बी० परिसर कुमाऊं विश्वविद्यालय सरस्वती विद्यामंदिर हल्द्वानी में आयोजित की गयी जनपद स्तरीय  प्रतियोगिताएं…….

 

बसंत पंचमी संदेश देता है कि हम प्रकृति से छेड़छाड़ न करें ।बसंत में रेसिपीपहले स्नोड्रॉप्स और डैफोडिल्स से लेकर प्रिमरोज़ और हेलेबोर्स , काको ,चमेली के सफेद फूल खिलते है जो माता सरस्वती को प्रिय है । बसंत पचमी के दिन ही बद्रीनाथ के कपाट खोलने के दिन का निर्णय होता है ।मां की कृपा सबपर बनी रहे यही प्रार्थना है।

Leave a Reply