उत्तराखण्ड ज़रा हटके नैनीताल

हमे प्रकृति के प्रति संवेदनशील बनाता है विश्व पर्यावरण दिवस…….

ख़बर शेयर करें -

 

नैनीताल- विश्व पर्यावरण दिवस हमे प्रकृति के प्रति संवेदनशील बनाता है तो हमारी मजबूरी यह है कि इस वर्ष गर्मी में बरसात तो शीत ऋतु में अधिक ठंड एवं बढ़ते तापक्रम ने हमे झकझोर दिया है वही बुरांस एवं काफल सहित अन्य पुष्प का समय से पहले खिलना। 1972.में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पर्यावरण पर स्टॉकहोम सम्मेलन के पहले दिन को चिह्नित करते हुए 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में नामित किया। 2023में इस दिवस की थीम बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन है। ग्लोबल वार्मिंग ,वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन ,अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन ने कई समस्याओं को जन्म दिया है। जंगलों के कटान से जीव धारिओ के आवास को नुकसान हुआ है तो प्रजातियां लुप्त हो रही है , मिट्टी का क्षरण तथा मानव की बढ़ती आबादी चुनौती है।

 

दुनिया में इंसान की आबादी 20वीं शताब्दी के शुरू मे 1.6 अरब थी, जो कि आज 7.5 अरब है। अनुमान है कि 2050 तक यह 10 अरब हो जाएगी। इतनी विशाल आबादी प्राकृतिक संसाधनों जैसे पानी पर भारी बोझ डाल रही है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं जिसकी वजह से समुद्र में जल का स्तर बढ़ रहा है, जिससे धरती के ज्यादातर शहर जलमग्न हो सकते है।। पर्यावरण हमारे आस-पास का परिवेश है, जो चारों तरफ से हमे जीवन देता है। इसके तत्व तथा परिस्थितियाँ जो हमारे चारों ओर हैं पर्यावरण कहलाती हैं। इसे प्राकृतिक वास, जनसंख्या पारिस्थितिकी एवं जीवमंडल नाम से भी जाना जाता है। परि और आवरण। ‘हमारे चारों ओर’ पृथ्वी पर फैली प्रत्येक वस्तु हमारे पर्यवरण का हिस्सा है।

 

मौलिक तथा जैविक तत्वों के पारस्परिक संबंध से बना है। इन तत्वों में भूमि, भू आकृतियाँ, जलाशय, जलवायु, जल प्रवाह , शैल, मृदा, खनिज संपत्ति आदि सम्मिलित है, जबकि जैविक तत्व में मानव, पशु, पक्षी एवं वनस्पति सम्मिलित हैं। पृथ्वी जो हमारा प्रथम वास है, पहला विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून, 1974 को “केवल एक पृथ्वी” ओनली वन अर्थ थीम के साथ मनाया गया था इस दिवस को मनाने का उद्देश्य विश्व के लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाना तथा साथ ही प्रकृति के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन करना भी था । पर्यावरण संरक्षण पर विचार करते हुए 19 नवंबर, 1986 को पर्यवरण संरक्षण अधिनियम लागू किया गया । संयुक्त राष्ट्र ने पारिस्थितिकी तंत्र का पुनर्निर्माण विषय के साथ वर्ष 2021 से 2030 तक एकोसिस्टम रेस्टोरेशन दशक की घोषणा भी की गई जिससे पर्यावरण को हुई क्षति की भरपाई की जा सके ।

यह भी पढ़ें 👉  खेल प्रतियोगिता में उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु एसएसपी महोदय द्वारा पावरलिफ्टिंग और वेटलिफ्टिंग टीम को किया गया सम्मानित.....

 

जंगल , पहाड़ , मरुभूमि या सागर हो, प्रत्येक का पुनर्निर्माण करना इसका उद्देश्य रखा गया है । मानवीय कृत्यों से प्रदूषण का स्तर बहुत बड़ा है । पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। इस प्रदूषण से पृथ्वी पर जीवन की परिकल्पना भी कठिन हो सकती है ।भारतीय महाद्वीप में वायु प्रदूषण , जल प्रदूषण , कचरा, घरेलू रूप से प्रतिबंधित सामान और प्राकृतिक पर्यावरण का प्रदूषण चुनौतियाँ हैं। आंकड़ों और पर्यावरण आकलन के अनुसार , 1995 से 2010 के बीच, भारत ने इन पर सुधार किया है हालांकि, प्रदूषण अभी भी देश के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। 2021 का विषय “बेहतर पर्यावरण के लिए जैव ईधन को बढ़ावा देना के लिए भारत सरकार ने पूरे देश में इथेनाल के उत्पादन और वितरण के लिए E-100 नामक प्रमुख योजना की शुरुआत की हैं।
भारत सरकार ने राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम की शुरुआत की है । हरित भारत राष्ट्रीय मिशन, राष्ट्रीय जैव विविधता कार्य योजना ,जलवायु परिवर्तन के लिए कार्य योजना , पर्यावरण संरक्षण के लिए यूज़ एंड थ्रो की प्रक्रिया को छोड़कर रिसायकल की प्रक्रिया को अंगीकृत करना , वर्षा जल-संचयन प्रणाली का उपयोग , स्वच्छता मिशन, जैविक खाद का उपयोग , प्लास्टिक का उपयोग रोकना , पेड़-पौधे लगाना और उनका संरक्षण ,कार्बन की मात्रा कम करने ,सौर उर्जा का अधिक से अधिक प्रयोग करना ,जल का संतुलित प्रयोग करना ।

यह भी पढ़ें 👉  विभिन्न समस्याओं के समाधान को लेकर कांग्रेसियों ने दिया ज्ञापन…..

 

तीन आर अर्थात रीसायकल, रिड्यूस और रियूज़ के सिद्धांत का पालन अनिवार्य करना । प्लास्टिक प्रदूषण के लिएअनुमान है कि प्रत्येक वर्ष तटीय समुदायों से 1.1 से 8.8 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में प्रवेश करता है। 2013 के अंत तक दुनिया भर के महासागरों में 86 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्री मलबे का भंडार हो गया था । 1 9 50 से 2013 तक उत्पादित वैश्विक प्लास्टिक का 1.4% समुद्र में प्रवेश कर चुका है अनुमान है की 2050 तक महासागरों में वजन के हिसाब से मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक हो सकता है । 2019 तक, हर साल 368 मिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन होता रहा ।;

 

एशिया में 51%, जिसमें चीन दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है। 1950 से 2018 तक, दुनिया भर में अनुमानित 6.3 बिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन किया गया , जिसमें से अनुमानित 9% का पुनर्नवीनीकरण किया गया है और अन्य 12% को जला दिया गया है । प्लास्टिक कचरे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करते है। । बेसल कन्वेंशन में मई 2019 का संशोधन प्लास्टिक कचरे के निर्यात/आयात को नियंत्रित करता है, जिसका मुख्य उद्देश्य विकसित देशों से विकासशील देशों को प्लास्टिक कचरे की शिपिंग को रोकना है । इस समझौते में लगभग सभी देश शामिल हो चुके हैं।2 मार्च 2022 को नैरोबी में, 175 देशों ने प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लक्ष्य के साथ वर्ष 2024 के अंत तक एक कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता करने का संकल्प लिया।
यह पृथ्वी सिर्फ हमारा घर ही नहीं, बल्कि हमारी माता भी है, इसके शोषण और दोहन को रोकना हमारी जिम्मेदारी है । पृथिवी सभी जीव धारियो की है अतः पर्यवरण को संरक्षित करने का प्रयास करें।एक वृक्ष 260 पौंड ऑक्सीजन पैदा करता है

यह भी पढ़ें 👉  रुद्रपुर सुपरटेक मॉल में व्यापारी बैठे धरने पर....  

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में प्रति वर्ष 46 लाख लोग वायु प्रदूषण से मरते हैं। वास्तव में देश का वायु गुणवत्ता सूचकांक भी जितनी जोर से खतरे की घण्टी बजा रहा है, उसका मुकाबला करने के लिये कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों को सोखने के लिए वनीकरण नहीं हो पा रहा है।

 

और एक एकड़ में लगे ऐसे ही प्रौर वृक्ष साल में 2.6 टन कार्बनडाइऑक्साइड का शोषण कर उसे समाप्त कर कार्बन स्टाॅक या कार्बन सोखने की क्षमता पैदा करते है । वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के तहत हमें 2030 तक इस क्षमता में 2.5 से लेकर 3 अरब टन तक कम करनी है। वन सर्वेक्षण विभाग की वन स्थिति रिपोर्ट 2019 के अनुसार देश के वनों की कार्बन स्टाॅक क्षमता 7,124.6 मिलियन टन है। लेकिन जिस गति से वृद्धि हो रही है उससे 2030 का लक्ष्य काफी दूर है।

 

पौधो से वास्पीकरण वातावरण का तापमान भी कम करता है। ऑक्सीजन का उत्पादन वृक्ष की पहचान है ।इसीलिए हमारे देश में पीपल और बट वृक्ष जैसे विशालकाय वृक्ष लगाए जाते थे और उनके संरक्षण के लिये उनकी पूजा की जाती थी। अब भी हर मांगलिक कार्य में पूजा के लिये आम और पीपल की पत्तियों काम आती हैं। वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के तौर पर घोषित किया जाता है ताकि लोग प्रकृति से और एड के जुड़ सके तथा मोटे अनाज को डाइट में जोड़कर उनकी सेहत को बेहतर बनाया जा सके। जलवायु परिवर्तन ,ग्लोबल वार्मिंग को कम करते हुए सुरक्षित जीवन के लिए हमे प्रकृति का संरक्षण करना ही होगा ताकि हम निरोग एवं आनंदित रहे सके ।

Leave a Reply