नैनीताल- कहा गया है की हम सबको अपने पूर्वजों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए, जिससे पितृ ऋण पूरा किया जा सके तथा हम उऋण हो सके ।*नैव श्राद्ध विवर्जयेत्’ क्योंकि पूर्वजों के प्रति श्रद्धा से ही श्राद्ध शब्द की उत्पत्ति हुई है। मृत्यु और अमरत्व दोनों मानव शरीर में निवास करते हैं, मृत्यु श्रीणता के कारण आती है और अमरत्व का कारण सत्य है। हम सभी जानते है की पेड़ की जड़ में पानी देने पर फल जड़ पर उत्पन्न होने की अपेक्षा पेड़ की ऊपरी शाखाओं पर प्राप्त होते हैं, उसी तरह हमारे कर्म का फल परलोक में प्राप्त होता है।
यदि किसी को अपने पूर्वजों की स्वर्ग गमन तिथि ज्ञात न हो अथवा तिथि श्राद्ध में न पड़ी हो वे सब आज श्रद्धा एवं परंपरानुसार अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर सकते हैं। श्राद्ध के प्रसाद अन्नादि- भोजन से उनकी तृप्ति होती है तथा श्राद्ध कर्म में प्रयुक्त पदार्थ मंत्र की शक्ति से वहां उन तक पहुँच जाते हैं जहां पर हमारे पूर्वज विराजमान है ।
शास्त्रानुसार देवकार्य की अपेक्षा पितृकार्य की विशेषता अधिक मानी गयी है। देवकार्यादपि सदा पितृकार्य विशिष्यते।देवताभ्यो हि पूर्व पितृणामाप्यायनं वरम्।। अत: देवकार्य से पूर्व पितरों को अवश्य तृप्त करना चाहिए। आज पितृ विसर्जन के अन्तिम दिन अमावस्या के अवसर पर सभी पितृ आत्माओं के श्रीचरणों में साष्टांग प्रणाम है।
डॉक्टर ललित तिवारी






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