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कोरोना के बाद बढ़ती महंगाई से जहां आम जनमानस का जनजीवन हुआ प्रभावित तो वही महंगाई ने तोड़ी ढोलक व्यवसाय की कमर….

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काशीपुर-(सुनील शर्मा) कोरोना के बाद बढ़ती महंगाई से जहां आम जनमानस का जनजीवन प्रभावित हुआ है तो वहीं ढोलक का व्यवसाय भी इससे अछूता नहीं है। ढोलक व्यापारियों की दिलचस्पी भी अपने इस व्यापार में कम हुई है।  चैती मेले में जहां पहले 22 से 25 ढोलक व्यापारी पहुंचते थे तो वहीं इस बार उनकी संख्या घटकर 8 रह गई है। पेश है काशीपुर से चैती मेले ढोलक बाजार से सुनील शर्मा की विशेष रिपोर्ट आपको बताते चलें कि काशीपुर में लगने वाले कुमाऊं के सुप्रसिद्ध चैती मेले में पिछले काफी समय से ढोलक बाजार लगता चला रहा है।

 

पूर्व में यहां मेले में आने वाले श्रद्धालु मेला घूमते थे तो वहीं पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के जिला अमरोहा से ढोलक व्यवसाई भी यहां मेला करने पहुंचते थे। मेले में आने वाले श्रद्धालु मेले से ढोलक खरीदकर ले जाते थे। बीते 2 वर्षों से पूर्ण करते धार्मिक कार्यक्रम भजन, कीर्तन व खुशी के अन्य कार्यक्रमों में रोक के चलते ढोलक का क्रेज कम हो गया है। बढ़ती महंगाई ने ढोलक व्यवसाय की भी कमर तोड़कर रख दी है। चैती मेले में 22 साल से लगातार अमरोहा से आ रहे हैं ढोलक व्यापारी शकील अहमद के मुताबिक वह काफी समय से अपने बुजुर्गों के साथ इस मेले में आते रहे हैं। उनके मुताबिक अब ठेकेदारों के द्वारा काफी महंगाई कर दी गयी है।

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उनके मुताबिक पहले ढोलक की दुकान लगाने के लिए ज़मीन 200 से 300 रुपये फ़ीट मिलती थी, अब वर्तमान में वही जमीन दोगने और तिगुने रेट पर मिल रही है। इस बार  दुकानदारी बिल्कुल कम है। मेले में इस बार ढोलक, मंजीरे, इकतारा, डमरू, बोंगो, बच्चों के चकला, बेलन आदि सामान इस बाजार में देखने को मिल रहा है। महंगाई की वजह से लोगों में क्रेज कम देखने को मिल रहा है। कोरोना के साथ ही महंगाई ने व्यापारियों की कमर भी तोड़ कर रख दी है। एक अन्य ढोलक व्यापारी मो० गुफरान के मुताबिक उन्हें 20 साल से अधिक यहाँ आते हुए हो गए हैं। जगह अब काफी महंगी हो गयी है।

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पहले दुकान के लिए जगह 8 से 9 हजार रुपये में मिल जाती थी अब उतनी जगह दोगुनी कीमत में मिल रही है। अच्छी क्वालिटी की जो ढोलक पहले 400 से 500 रुपये में मिल जाती थी वही ढोलक 800 से 1000 रुपये में मिल रही है। ढोलक में लगने वाला लोहा पहले 100 रुपये किलो मिल जाता था, वह अब 140 रुपये किलो में आ रहा है। ढोलक में इस्तेमाल होने वाली बकरे की खाल पहले एक ढोलक के निर्माण में खाल 30 रुपये की मिलती थी अब 50 रुपये में मिलती है। कुल मिलाकर कहा जाए तो ढोलक में लगने वाले लोहे का रेट दोगुना हो गया है साथ ही लकड़ी और चमड़ा भी महंगा हो गया है। काशीपुर के चैती मेले में ढोलक  बाजार में ढोलक लेने आने वाले ग्राहकों के मुताबिक बच्चों की जो ढोलक पहले 50 से 60 रुपये में मिल जाती थी वह इस बार दोगुने रेट में 120 रुपये से लेकर 150 रुपये तक मिल रही है।

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वही बड़ी ढोलक की कीमतों में भी तिगुने रुपये का इजाफा हुआ है। जो ढोलक पहले 300 आए 400 रुपये तक मिल जाती थी वह अब 1000 रुपये लेकर 1200 रुपये तक मिल रही है। बीते दो वर्षों से कोई कार्यक्रम नहीं होने से लोगों की दिलचस्पी भी कम हुई है तो वहीं ठेकेदारों की मनमानी और प्रशासन की अनदेखी के चलते दुकानदारों के साथ साथ ग्राहकों की जेबों पर भी डाका डल रहा है और ठेकेदार चांदी काट रहे हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो ढोलक के शौकीनों के लिए अब ढोलक का शौक महंगाई के चलते दम तोड़ने लागा है।

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