उत्तराखण्ड नैनीताल

हाईकोर्ट ने गुर्जरों के विस्थापन को लेकर सख्त आदेशों का पालन न होने पर जताई नाराजगी

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वन गुर्जरों के मामले में पूर्व में पांच बिंदुओं पर जारी किए थे आदेश

अभी तक सरकार ने किसी पर नहीं उठाया कदम दो को होगी सुनवा

नैनीताल राज्य के उच्च न्यायालय ने राज्य वन गुर्जरों के विस्थापन को लेकर पूर्व में जारी आदेशों का पालन न करने पर कड़ी नाराजगी जताई है। एक जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए अदालत ने दो मार्च की तारीख तय की है। उत्तराखंड के वन गुर्जरों को संरक्षण व विस्थापन के मामले में दायर जनहित याचिका याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पूर्व में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने सरकार को पांच बिंदुओं पर आदेश जारी किए थे। अदालत ने कार्बैट पार्क के सोना नदी क्षेत्र में छुटे हुए 24 वन गुर्जर परिवारों को दस लाख रुपए तीन महीने के भीतर व छह महीने के भीतर भूमि उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे।

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इसके साथ ही वन गुर्जरों के सभी परिवारों को भूमि के मालिकाना हक़ संबंधी प्रमाण पत्र छह महीने के अंदर देने और राजाजी नेशनल पार्क में वन गुर्जरों के उजड़े हुए परिवारों को जीवन यापन के लिए सभी आवश्यक मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने को कहा था। राजाजी नेशनल पार्क के वन गुर्जरों के विस्थापन के लिए सरकार से एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा गया था। लेकिन सरकार ने हाईकोर्ट के इन आदेशों का पालन नहीं किया। अदालत ने मंगलवार को इससे संबंधित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा व न्यायमूर्ति एन एस धानिक की खंडपीठ में हुई।

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इन मामलों में स्वयंसेवी संस्थाओं थिर्क एक्ट राइजिंग फाउंडेशन व हिमालयन युवा ग्रामीण याचिकाकर्ता है। याचिकाकर्ता का कहना है कि सरकार ने वन गुर्जरों के विस्थापन के लिए जिस कमेटी को गठित किया था उसकी रिपोर्ट पर सरकार ने कोई अमल नहीं किया। सरकार ने वन गुर्जरों के विस्थापन के  नियमवाली बनाईं है,वह भम्रित करने वाली है। पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ की ओर से अदालत को बताया गया कि अधिकतर परिवारों को मुआवजा दे दिया गया है और उनके विस्थापन की कार्रवाई जारी है। जल्द ही इन लोगों को मालिकाना हक संबंधी दस्तावेज जारी कर दिए जाएंगे। खंडपीठ ने पूर्व में जारी आदेशों का अनुपालन न होने पर कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए इस मामले की अगली सुनवाई दो मार्च को निर्धारित की है।

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