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गाजर घास जागरूकता एवं उन्मूलन सप्ताह कार्यक्रम प्रारम्भ…

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पंतनगर- 16 अगस्त 2022। विष्वविद्यालय में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा वित्त पोषित खरपतवार नियंत्रण परियोजना के अर्न्तगत कृषि महाविद्यालय के सस्य विज्ञान विभाग द्वारा गाजर घास जागरुकता सप्ताह कार्यक्रम का षुभारम्भ फसल अनुसंधान केन्द्र के सभागार में किया गया, जिसकी अध्यक्षता संयुक्त निदेषक, डा. एस. के. वर्मा द्वारा किया गया। कार्यक्रम में संयुक्त निदेषक षोध, डा. सुभाष चन्द्रा; सह निदेषक, डा. ए.पी. सिंह; परियोजना अधिकारी, डा. वीरेन्द्र प्रताप सिंह; वरिष्ठ षोध अधिकारी, डा. तेज प्रताप सिंह; डा. एस.पी. सिंह एवं परियोजना के अन्य कर्मचारी उपस्थित थे। गाजर घास (पार्थेनियम हिस्ट्रोफोरस) जिसको विभिन्न स्थानों पर कांग्रेस घास, चटक चॉदनी, गंधी बूटी आदि नामांे से जाना जाता है।

 

यह बहुत ही हानिकारक एवं विषैला पौधा है, जिसके प्रभाव से मनुष्यों में डरमेटाईटिस, एलर्जी, चर्मरोग, हे-फीवर एवं अस्थमा आदि बीमारियां एवं पषुओं द्वारा खाने से दूध में कमी तथा विषाक्तता उत्पन्न हो जाती है। यह पौधा एक वर्ष में तीन बार अपना जीवन-चक्र पूर्ण कर लेता है तथा इसके एक पौधे से 10,000-25,000 तक बीज उत्पन्न होते हैं। यह पौधा पर्यावरण को भी प्रदूषित करता है। डा. तेज प्रताप ने गाजर घास से होने वाली हानियों एवं इसके नियंत्रण के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि गाजर घास का दुष्प्रभाव पहले अकृषित क्षेत्रों में था, परन्तु अब कृषित क्षेत्रों में अपना विस्तार कर लिया है जिससे फसलांे को 35-40 प्रतिषत तक हानि हो रही है।

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उन्होंने बताया कि गाजर घास देष के लगभग 35 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्रफल में फैल चुका है, जिसका समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया तो भविष्य में बहुत जल्दी ही अधिक क्षेत्रफल में फैल जायेगा। डा. तेज प्रताप ने बताया कि परिसर को गाजर घास से मुक्ति करने के लिए कई वर्षो से कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिससे परिसर में गाजर घास नगण्य है तथा परिसर को गाजर घास मुक्त रखने के लिए षतत प्रयास जारी है। परियोजना अधिकारी डा. वीरेन्द्र प्रताप सिंह ने विष्वविद्यालय परिसर को गाजर घास मुक्त रखने के लिए सभी से सहयोग का आह्वान किया। यह कार्यक्रम परिसर के अलावा जनपद के अन्य हिस्सांे जैसे स्कूल, कालेजों, गांवों में विद्यार्थियों, युवाओं, एवं कृषकों के बीच किया जाता है जिससे समाज में जागरुकता लायी जा सके, जिससे गाजर घास को सुचारु रुप से समाप्त किया जा सके।

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कार्यक्रम का संचालन डा. एस.पी. सिंह ने किया तथा गाजर घास के उन्मूलन की जैविक विधियों के बारे में विस्तार से बताया। डा. एस.के. वर्मा ने केन्द्र के वैज्ञानिकों, अधिकारियों, विद्यार्थियों के अलावा आम सभी नागरिको को अंामत्रित करते हुए कहा कि जब राष्ट्रीय स्तर पर गाजर घास जारुकता सप्ताह मनाया जा रहा है तो हमें समझना चाहिए कि गाजर घास हमारे लिए कितनी बड़ी समस्या है तथा इस समस्या के निवारण के लिए हमें प्रयास करना चाहिए, जिससे समाज इसके प्रकोप से बच सके। उन्हांेने गाजर घास से कम्पोस्ट व वर्मी कम्पोस्ट वैज्ञानिक तरीके से बनाकर इसका प्रयोग करने की बात भी कही। अंत में डा. तेज प्रताप ने सभी उपस्थितजनों को धन्यवाद दिया।

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