माता-पिता से मिले संस्कार, बेजुबानों के ईलाज सहित करा रहे अंतिम संस्कार विक्की पाठक…….
पंतनगर/लालकुआं- बीमार पशुओं, सड़क हादसे में घायल या मरने वाले आवारा पशुओं की दुर्गति देखकर किसी का भी मन विचलित होना स्वाभाविक है। लेकिन कितने ऐसे लोग हैं, जो उनका ईलाज या अंतिम संस्कार करवाने के लिए आगे आते हैं,
बस अफसोस जाहिर कर आगे बढ़ जाते हैं। वर्ष 2005 में एक हादसे में गोवंशीय पशु को छटपटाते देख और मृत्यु के बाद उसकी दुर्दशा ने जवाहर नगर के विक्की पाठक को इतना विचलित कर दिया, कि उसने इनके ईलाज/अंतिम संस्कार का बीड़ा उठा लिया। 18 वर्षों में वह सैकड़ों पशुओं के ईलाज सहित 524 पशुओं का अंतिम संस्कार कर चुका है।
बताते चले कि बेड़ीनाग के पांखू में दसौली गांव निवासी शिवदत्त पाठक बहुत पहले जवाहर नगर में आकर बस गए थे। उनके पुत्र विक्की ने शुरू से माता पिता के सेवाभाव और जानवरों के प्रति स्नेह को देखा था। जिससे विक्की के मन में भी बचपन से ही जरूरतमंदों की मदद और जानवरों के प्रति अपार स्नेह पनप गया। युवावस्था में ही विक्की यूकेडी से जुड़ गए और उन्होंने 25 दिन की पदयात्रा भी की।
उत्तराखंड राज्य आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भागीदारी निभाई और जेल भी गए। वर्ष 2005 में विक्की ने रूद्रपुर-लालकुआं टैंपो यूनियन की आधारशिला रखी और टैंपो का संचालन कराने लगे। इसी दौरान एक सड़क हादसे में मरे गोवंशीय पशु ने उनका पशुओं के प्रति नजरिया ही बदल दिया।
उन्होंने जीवन भर आवारों पशुओं के अंतिम संस्कार की कसम ली और जनसहयोग से उसे आज तक निभाते आ रहे हैं। आलम यह है कि आस-पास क्षेत्र में कहीं भी आवारा पशुओं के मरने की सूचना पर वह जेसीबी लेकर पहुंचते हैं, और विधिवत उसका अंतिम संस्कार करवाते हैं।
अनाथ बच्चों के मसीहा बने विक्की पाठक-
भीख मांगने और कूड़ा बीनने वाले बच्चों में मसीहा की छवि…….
पंतनगर-भीख मांगते और कूड़ा बीनते बच्चों को देखकर विक्की वहीं रूक जाते हैं और उन्हें भीख मांगना व कूड़ा बीनना छोड़कर पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। वह कई बच्चों को देवभूमि फाउंउेशन की ओर से बिंदुखत्ता में संचालित स्कूल में दाखिला भी करवा चुके हैं।
कही भी इन बच्चों के मिलने पर भरपेट भोजन करवाना और जरूरत के अनुसार उनको कपड़े आदि उपलब्ध करवाना उनके जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। जिससे क्षेत्र के इस प्रकार के बच्चों में उनकी छवि मसीहा की बन गई है।
प्रशासन से सहयोग की अपेक्षा…….
इधर विक्की ने बताया कि पशु के मौत के बाद वह वहीं पड़ा सड़ता रहता है और अंधेरे में कई वाहन उसके ऊपर से गुजरने के कारण शव क्षत विक्षत हो जाता है। जिससे उठने वाली दुर्गंध अन्य राहगीरों के लिए मुसीबत व बीमारियों का सबब बनती है।
बताया कि किसी भी पशु के अंतिम संस्कार में जेसीबी व अन्य मद में लगभग एक हजार रूपये खर्च हो जाते हैं उनकी अल्प आय होने के चलते उन्हें जनसहयोग जुटाना पड़ता है। यदि प्रशासन इस कार्य में उनका सहयोग करे तो मुश्किलें कुद आसान हो सकती हैं।
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