देहरादून। राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी के कार्यकर्ताओं ने प्रदेश में मजबूत भू-कानून और मूल निवास 1950 को लागू करने की मांग को लेकर विधानसभा का घेराव किया। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवप्रसाद सेमवाल और प्रदेश अध्यक्ष सुलोचना ईष्टवाल के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने नेहरू कॉलोनी फव्वारा चौक से विधानसभा कूच किया।
विधानसभा से पहले पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाकर जुलूस को रोक दिया, जिससे कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच तीखी नोकझोंक और धक्का-मुक्की हुई। पुलिस द्वारा रोके जाने के बाद कार्यकर्ता वहीं धरने पर बैठ गए और जोरदार नारेबाजी की। कुछ समय बाद सिटी मजिस्ट्रेट के माध्यम से राज्यपाल और मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित किया गया।
मांगे:
- उत्तराखंड में मूल निवास 1950 को लागू किया जाए।
- प्रदेश में मजबूत भू-कानून बनाया जाए।
- यूसीसी (समान नागरिक संहिता) से लिव-इन रिलेशनशिप कानून को हटाया जाए।
- पूरे उत्तराखंड को ओबीसी का दर्जा दिया जाए।
- पर्वतीय क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा जाए।
राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवप्रसाद सेमवाल ने कहा कि सरकार जनता का ध्यान मूल निवास और भू-कानून से हटाने के लिए यूसीसी (समान नागरिक संहिता) को जबरन लागू करना चाहती है। उन्होंने कहा कि अगर यूसीसी को लागू करना है तो इसे पूरे देश में समान रूप से सभी जाति-धर्म के लोगों पर लागू किया जाए या फिर इसे वापस लिया जाए।
प्रदेश अध्यक्ष सुलोचना ईष्टवाल ने कहा कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाना बेहद जरूरी है ताकि यहां के लोगों को उनका हक मिल सके। इसके अलावा, पूरे प्रदेश को ओबीसी दर्जा देने की मांग भी प्रमुख है।
प्रदर्शन में मुख्य रूप से मौजूद नेता और कार्यकर्ता:
प्रदेश संगठन सह सचिव राजेंद्र गुसाई, विनोद कोठियाल, राजेंद्र कोठियाल, सुरेंद्र चौहान, ललित श्रीवास्तव, प्रांजल नौडियाल, मीना थपलियाल, रंजना नेगी, रचना थपलियाल, मंजू रावत, रजनी कुकरेती, शांति चौहान, शशि रावत, द्रोपदी रावत, सोभित भद्री, वेद प्रकाश भट्ट, उपेंद्र सकलानी, वलबीर सिंह नेगी, गुलाब सिंह रावत, बीना डिमरी, मीनाक्षी नौटियाल, शैलेन्द्र गुसांई, पवन बिजल्वाण, अमन रावत, उमा खंडूरी, ओमप्रकाश खंडूरी, पंकज उनियाल, सुमित थपलियाल, नीरज भराटी सहित कई पदाधिकारी और कार्यकर्ता इस प्रदर्शन में शामिल रहे।
इस प्रदर्शन से यह स्पष्ट हो गया है कि उत्तराखंड में मूल निवास और भू-कानून को लेकर जनता और क्षेत्रीय दलों में नाराजगी बढ़ रही है। अब देखना यह होगा कि सरकार इन मांगों पर क्या रुख अपनाती है।
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