उत्तराखण्ड रुद्रपुर

बेटियां से ही बाप का मान है, बेटियां है तो घर में त्यौहार है बेटियां हैं तो घर में खुशियां हैं बेटियों से ही घर में रौनक है

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मेरी बेटी-मेरा अभिमान

बेटियां घर की शान हैं बेटियां बाप का अभिमान है

बेटियां मां का श्रृंगार हैं

बेटी कुदरत का अनमोल उपहार है

रुद्रपुर-(एम् सलीम खान) आज 24 जनवरी राष्ट्रीय बालिका दिवस को श्रीमती इंदिरा गांधी जी को नारी शक्ति के रूप में याद किया जाता है,आज ही के दिन इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठी थी इसलिए इस दिन को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया।

इसको मनाने का मुख्य उद्देश् बालिकाओं को घरेलू हिंसा, बाल विवाह व दहेज जैसी चीज़ों के बारे में सचेत करना है।

किशोरियों व बालिकाओं के कल्याण के लिए सरकार ने ‘समग्र बाल विकास सेवा’, ‘धनलक्ष्मी’, ‘सबला’ जैसी योजनाएँ चलाई हैं। इन सबका उद्देश्य ख़ासकर किशोरियों को सशक्त बनाना है ताकि वे आगे चलकर एक बेहतर समाज के निर्माण में योगदान दे सकें।

आज की बालिका जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ रही है चाहे वो क्षेत्र खेल हो या राजनीति, घर हो या उद्योग। राष्ट्रमण्डल खेलों के गोल्ड मैडल हो या मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति के पद पर आसीन होकर देश सेवा करने का काम हो सभी क्षेत्रों में लड़कियाँ समान रूप से भागीदारी ले रही है।

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आज बालिका हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है लेकिन आज भी वह अनेक कुरीतियों का शिकार हैं। ये कुरीतियों उसके आगे बढ़ने में बाधाएँ उत्पन्न करती है। पढ़े-लिखे लोग और जागरूक समाज भी इस समस्या से अछूता नहीं है। आज हज़ारों लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है या जन्म लेते ही लावारिस छोड़ दिया जाता है। आज भी समाज में कई घर ऐसे हैं, जहाँ बेटियों को बेटों की तरह अच्छा खाना और अच्छी शिक्षा नहीं दी जा रही है।

 

भारत में 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 44.5 प्रतिशत (क़रीब आधी) औरतें ऐसी हैं, जिनकी शादियाँ 18 साल के पहले हुईं हैं। इन 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 22 प्रतिशत (क़रीब एक चौथाई) औरतें ऐसी हैं, जो 18 साल के पहले माँ बनी हैं। इन कम उम्र की लड़कियों से 73 प्रतिशत (सबसे ज़्यादा) बच्चे पैदा हुए हैं। इन बच्चों में 67 प्रतिशत (दो-तिहाई) कुपोषण के शिकार हैं। लड़कियों के आगे न बढ़ने के कारण यह भी है कि अक्सर घरों में कहा जाता है कि अगर लड़की है, तो उन्हें घर संभालने और अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने की अधिक ज़रूरत है।

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इस प्रकार की बातें उसके सुधार की राह में बाधाएँ बनती हैं। इन्हीं सब स्थितियों और भेदभावों को मिटाने के मक़सद से ‘बालिका दिवस’ मनाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। इसे बालिकाओं की अपनी पहचान न उभर पाने के पीछे छिपे असली कारणों को सामने लाने के रूप में मनाने की जरुरत है, जो सामाजिक धारणा को समझने के साथ-साथ बालिकाओं को बहन, बेटी, पत्नी या माँ के दायरों से बाहर निकालने और उन्हें सामाजिक भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करने में मदद के तौर पर जाना जाए।

समाज में आज भी बालक और बालिकाओं में भेदभाव किया जा रहा है। यही कारण है कि बालिकाओं को जन्म लेने से पहले (भ्रूण) ही खत्म करवाया जा रहा है। सभी को मिलकर इस कुरीति को मिटाना है। बाल विवाह, भ्रूण हत्या, शिशु मृत्यु दर रोके जाने, स्तनपान कराने, नियमित टीकाकरण, दहेज प्रथा एवं अन्य सामाजिक ज्वलंत विषयों में सुधार लाना जरूरी है।

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जीने का उसको भी अधिकार,

चाहिए उसे थोडा सा प्यार।

जन्म से पहले न उसे मारो,

कभी तो अपने मन में विचारो।

शायद वही बन जाए सहारा,

डूबते को मिल जाए किनारा॥

बालिकाओं की सेहत, पोषण व पढ़ाई जैसी चीज़ों पर ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है ताकि बड़ी होकर वे शारीरिक, आर्थिक, मानसिक व भावनात्मक रूप से आत्मनिर्भर व सक्षम बन सकें। बालिकाओं को घरेलू हिंसा, बाल विवाह व दहेज जैसी चीज़ों के बारे में सचेत करना चाहिए। उन्हें अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक बनाया जाना चाहिए। किशोरियों व बालिकाओं के कल्याण के लिए सरकार ने ‘समग्र बाल विकास सेवा’, ‘धनलक्ष्मी’ जैसी योजनाएँ चलाई हैं। सबला योजना’ किशोरियों के सशक्तीकरण के लिए समर्पित है। इन सबका उद्देश्य लड़कियों, ख़ासकर किशोरियों को सशक्त बनाना है ताकि वे आगे चलकर एक बेहतर समाज के निर्माण में योगदान दे सकें।

राष्ट्रीय बालिका दिवस के दिन हमें लड़का-लड़की में भेद नहीं करने व समाज के लोगों को लिंग समानता के बारे में जागरूक करने की प्रतिज्ञा लेनी चाहिए।

राष्ट्र को प्रगति के रास्ते हो ले जाना,नारी को बराबरी का दर्जा होगा देना।

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