हल्द्वानी। (धीरज भट्ट) राज्य की जनता पर पहले से ही उपचुनाव भारी पड़ रहे हैं वहीं इस बीच उत्तरकाशी के गंगोत्री के विधायक गोपाल सिंह रावत का निधन होने से एक बार फिर से इस सीट पर उपचुनाव किया जायेगा। वहीं इससे पूर्व हालिया 17 अपै्रल को सल्ट में पूर्व विधायक एसएस जीना के निधन से उपचुनाव कराया गया था। ज्ञात हो कि गंगोत्री के विधायक गोपाल सिंह रावत का स्वास्थ्य लंबे समय से खराब चल रहा था। विगत दिनों बीमारी के चलते उनका निधन हो गया। इधर उनके निधन से एक विधानसभा सीट पर और उपचुनाव किया जायेगा। वहीं भाजपा के विधायक के निधन के बाद उनकी संख्या बल भी 55 हो गयी है। इधर राज्य विधानसभा के चैथे विधानसभा चुनाव 2017 में संपन्न होने के बाद से अब तक चार विधायकों का निधन हो चुका है और ये चारों विधायक सत्तारूढ़ भाजपा के ही विधायक थे। 2018 में थराली से मगल लाल शाह, 2019 में पिथौरागढ़ से प्रकाश पंत का निधन हुआ था। इधर 2020 नवंबर में कोरोना के चलते सल्ट के विधायक सुरेन्द्र सिंह जीना का निधन हो गया था और उनकी खाली सीट पर 17 अप्रैल में चुनाव हुआ जिसका परिणाम दो मई को आयेगा। वहीं इसी बीच गंगोत्री के विधायक गोपाल सिंह रावत का निधन हो गया है। इसे एक संयोग कहंे या सियासत का फैक्टर, थराली से मगन लाल शाह की पत्नी और पिथौरागढ़ से प्रकाश पंत की पत्नी चुनावों में विजय प्राप्त की। इधर सल्ट में भी पूर्व विधायक जीना के भाई के टिकट को दिया गया है और यहां चुनाव परिणाम क्या करवट लेता है। इसका पता आने वाले दो मई को ही पता चलेगा। इससे पूर्व उत्तराखंड बनने के बाद अभी तक विधायकों के निधन पर पांच बार उपचुनाव हो चुके हैं।
द्वाराहाट-2005
भगवानपुर-2014
थराली-2018
पिथौरागढ़-2019
सल्ट-2021
जिसने जीती गंगोत्री उसकी बनी सरकार
यह एक अजीब सियासती संयोग है और पिछले 60 सालों से अविभाजित उत्तर प्रदेश की राजनीति से आज तक इसका जादू कायम है। आलम यह है कि जो पार्टी गंगोत्री में चुनाव जीतती है और राज्य में सरकार भी उसी की बनती है। हालाकि अभी राज्य में भाजपा मेें सरकार पहले से ही है और ये आंकड़ा भले ही बहुत मान्य नहीं रखता लेकिन अगर यहंा से उपचुनावों में एक बार पार्टी फतह करती है तो यह रिकार्ड अविविजित ही रहेगा। उत्तरकाशी की इस सीट के साथ यह मिथक आजादी के बाद से ही जुड़ा हुआ है। 1952 में इस सीट का नाम गंगोत्री नहीं, उत्तरकाशी था। पहले चुनाव में जयेंद्र सिंह बिष्ट निर्दलीय चुनाव जीतकर कांग्रेस में शामिल हो गए। तब उप्र में पंडित गोविद बल्लभ पंत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी। 1957 के चुनाव में जयेंद्र निर्विरोध निर्वाचित हुए और कांग्रेस ही सत्तासीन हुई। 1958 में विधायक जयेंद्र की मृत्यु के बाद कांग्रेस के ही रामचंद्र उनियाल विधायक बने। इस बीच टिहरी रियासत का हिस्सा रहे उत्तरकाशी को 1960 में अलग जनपद बनाया गया, लेकिन यह सियासी मिथक बरकरार रहा। साल 1977 में जनता पार्टी के प्रत्याशी बरफियालाल जुवांठा यहां चुनाव जीते तो सरकार जनता पार्टी की बनी। 1991 में भाजपा के ज्ञानचंद जीते और राज्य में उनके दल ने सरकार बनाई। 1996 में फिर ज्ञानचंद जीते और सरकार फिर से भाजपा की आई। 2000 में उत्तरप्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया था। विधानसभा सीटों के परिसीमन से उत्तरकाशी विधानसभा जौनसार, टिहरी, पुरोला, यमुनोत्री और गंगोत्री चार विधानसभा सीटों में बंट गया। 2002 में राज्य में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के विजयपाल सजवाण कांग्रेस से जीत कर विधानसभा में पहुंचे और कांग्रेस की सरकार बनी। इसके बाद 2007 में भाजपा के गोपाल सिंह रावत जीते तो सरकार बनी भाजपा की। साल 2012 में दोबारा फिर कांग्रेस के विजयपाल के जीतने पर प्रदेश में फिर कांग्रेस की सरकार बनी। इधर 2017 में भाजपा के गोपाल सिंह रावत की विजय हुई और एक बार फिर से राज्य में भाजपा की सरकार बनी।
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