नैनीताल- संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जैव विविधता के विषय को समझाने और जागरूकता के लिए प्रत्येक वर्ष 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के रूप में मनाया जाता है । पृथ्वी के विभिन्न अवयव के संतुलन को बनाए रखने के लिए जैव विविधता अति आवश्यक है। यह पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की आधार है, जो मानव जीवन कल्याण से जुड़ी हैं। वर्ष 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जैव विविधता के लिए 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस घोषित किया। वर्ष 2011-2020 की अवधि को संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता दशक के रूप में घोषित किया गया ताकि जैव विविधता पर एक रणनीतिक योजना का क्रियान्वन किया जा सके, साथ ही प्रकृति के साथ सतत विकास एवं संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सके
। वर्ष 2021-2030 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा सतत् विकास के कर्म में इस दशक’ को पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के रूप में घोषित किया गया। जैव विविधता सतत् विकास चुनौतियों का समाधान करने के लिये यह एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है। जैव विविधता के संरक्षण हेतु वैश्विक पहल की जा रही है जिसमें ।भारत की भूमिका एक सीबीडी के पक्षकार के रूप में है। सीबीडी से वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण प्रगति, आर्थिक विकास और प्रकृति का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके। जैव विविधता शब्द का प्रयोग पृथ्वी पर जीवन की विशाल विविधता का उपयोग विशेष रूप से एक क्षेत्र या पारिस्थितिकी तंत्र में सभी प्रजातियों को संदर्भित करने हेतु किया जा सकता है।
जैव विविधता पौधों, बैक्टीरिया, जानवरों और मनुष्यों सहित हर जीवित चीज को संदर्भित करती है। लेकिन इसमें प्रत्येक प्रजाति में विद्यमान आनुवंशिक अंतर भी शामिल होता है। वर्तमान में 175000 प्रजातियां ज्ञात की जा चुकी है तथा अनुमान है की 5से 15मिलियन प्रजातियां इस पृथ्वी में हो सकती है । जैव विविधता प्रतिवर्ष 26ट्रिलियन डॉलर की आय देती है तो विश्व की 11प्रतिसत इकोनॉमी इस पर आधारित है । वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर द्वारा अपनी प्रमुख लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2020 में इस बात के प्रति चेताया गया है कि वैश्विक स्तर पर जैव विविधता में भारी गिरावट आ रही है। इस रिपोर्ट में 50 वर्षों से भी कम समय में आधे वैश्विक प्रजातियों के नष्ट होने की बात कही गई है जबकि पहले प्रजातियों में इतनी गिरावट नहीं देखी गई। जैव विविधता के संरक्षण से पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होती है जहांँ प्रत्येक प्रजाति, महत्त्वपूर्ण होती है।
पौधों की प्रजातियों की एक बड़ी संख्या के होने का अर्थ है, फसलों की अधिक विविधता। अधिक प्रजाति विविधता सभी जीवन रूपों की प्राकृतिक स्थिरता सुनिश्चित करती है। जैव विविधता के संरक्षण हेतु वैश्विक स्तर पर संरक्षण किया जाना चाहिये ताकि खाद्य शृंखलाएँ बनी रहें। खाद्य शृंखला में गड़बड़ी पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर सकती है। 2023की थीम फ्रॉम एग्रीमेंट तो एक्शन ,बिल्ड बैक बायोडायवर्सिटी है । उत्तराखंड मे करीब 65प्रतिशत जंगल है।जिसमें 19 प्रतिशत बर्फ तो 24295 कुल जंगल है जिसमें मॉडरेट डेंस फॉरेस्ट सबसे ज्यादा है जो 45.43 प्रतिसत है।उत्तराखंड में भारत का 3.43 प्रतिसत जंगल है।
जंगल जो जैव विविधता का केंद्र होते है इससे संरक्षित करने के लिए कई कानून बने वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट ,फॉरेस्ट प्रोटेक्शन एक्ट 2002,नेशनल फॉरेस्ट पॉलिसी ,उत्तरांचल पंचायत फॉरेस्ट रूल 2001के साथ 701औषधीय पौधे तथा 80प्रतिसत ग्रामीण जनसंख्या जंगल पर आधारित है ।ट्रॉपिकल मॉइस्ट ड्रासिडियस ,ट्रॉपिकल ड्राई ,सब ट्रॉपिकल पाइन ,हिमालयन मॉयस्ट टेंपरेट ,हिमालयन ड्राई टेम्परेट ,सब अल्पाइन फॉरेस्ट ,ड्राई अल्पाइन स्क्रब जंगल के साथ देवदार ,स्प्रूस ,सुरई , ओक पाइन,साल , टीक रोसवुड ,यूकेलिप्टस ,पोपलर के साथ जैव विविधता हेतु एफोरेस्टेशन ,इको डेवलपमेंट ,आई एफ पी ,वन योजना से संरक्षित की जा रही है ।
हरा भोजन 38प्रतिसत पैड से तो 31प्रतिसत गास से प्राप्ति है। सरकारों द्वारा नंदा देवी बायोस्फेर , कॉर्बेट नेशनल ,गंगोत्री नेशनल गोविंद नेशनल ,नंदा देवी राजाजी ,वाले ऑफ फ्लावर राष्ट्रीय पार्क के साथ अभ्यारण अस्कोट , बिनसर ,गोविंद केदारनाथ सोन नदी ,नंधौर ,मसरी बनाए गए है जो जैव विविधता को संरक्षित करने में आगे है।उत्तराखंड में यमुना घाटी से काली गंगा तक गंगा में 968ग्लेशियर ,यमुना में 52,भागीरथी में 238,अलकनंदा में 407 काली गंगा में 271 ग्लेशियर सम्माहित है। 4900फौनल विविधता में 4900प्रजातियां में 100 स्तनधारी बर्ड्स की 622 तितलियां,ऑर्किड्स 242,लिकन 539, एल्गा 346,ब्रायोफाइट्स 478, टेरीडोफिट्स 365, अनावृतबिजी डिकॉट्स 3811 मोनोकॉट्स 1250के साथ 176 प्रजाति संकट में है जिनमें गेठी पेरिस , ग्लोरियस ,लिलियम के साथ कोर्डिसेप,हिमालयन मोनल,ग्रेट हॉर्नबिल,के साथ 100स्तनधारी ,45 बर्ड्स ,शामिल है।उत्तराखंड 40000करोड़ के इकोसिस्टम सर्विस देता है ।
यहां की नदिया गंगा,यमुना ,भागीरथी ,अलकनंदा ,रामगंगा ,नायर ,कोसी ,सरयू ,शारदा,जैव विविधता में बढ़ाने में योगदान करती है ।भारतीय हिमालय में 18440 पौधो के प्रजातियां मिलती है जिले 9000अवृतबीजी है जबकि 1748औषधीय पौधे मिलते है।जैव विविधता ही एक मात्र विकल्प है जो सतत विकास के साथ ग्लोबल वार्मिंग ,जलवायु परिवर्तन को कम कर सकता है।बायोडायवर्सिटी एक्ट 2002क्या इनके संरक्षण के लिए पर्याप्त है या सम्पूर्ण मानवता को इसके संरक्षण के प्रति क्रियाशील ही आगे आना होगा।
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