
नैनीताल – उत्तराखंड की समृद्ध वनस्पति विविधता पर आधारित पुस्तक “Himalayan Green Treasure: Useful Plants of Western Himalaya, India” का भव्य विमोचन शुक्रवार को नैनीताल क्लब में हुआ। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित उत्तराखंड के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने पुस्तक का लोकार्पण किया और सभी लेखकों को इस शोधपरक कार्य के लिए हार्दिक बधाई दी।

यह पुस्तक उत्तराखंड की 1265 उपयोगी पौधों की प्रजातियों का समावेश करती है, जो कि 757 कुलों (families) में वर्गीकृत हैं। इसमें प्रमुखतः:
द्विबीजपत्री (Dicots) – 125 कुल, 1052 वंश, और संबंधित प्रजातियाँ
एकबीजपत्री (Monocots) – 24 कुल, 102 वंश
जिम्नोस्पर्म (Gymnosperms) – 5 कुल, 9 वंश, 14 प्रजातियाँ
टेरीडोफाइट्स (Pteridophytes) – 16 कुल, 26 वंश, 36 प्रजातियाँ
इन सभी पौधों के अद्यतन वनस्पति नाम, विस्तृत विवरण, प्रयोग के क्षेत्र, तथा भौगोलिक वितरण का वैज्ञानिक विश्लेषण इस पुस्तक में किया गया है।
पुस्तक के लेखक मंडल में शामिल हैं:
डॉ. कंचन उप्रेती, वनस्पति विज्ञान विभाग
डॉ. नवीन चंद्र पांडे, गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय पर्यावरण संस्थान, लद्दाख
डॉ. गजेंद्र सिंह, यू-सेक देहरादून
प्रो. ललित तिवारी, विभागाध्यक्ष, वनस्पति विज्ञान विभाग
प्रो. यशपाल सिंह पांगती, फैलो, नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज
इस 850 पृष्ठों की शोधग्रंथ को इंदु बुक सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया है। इसकी कीमत ₹6995 है, तथा पुस्तक में अनेक पौधों के रंगीन चित्र भी शामिल हैं जो इसे संग्रहणीय बनाते हैं।
पुस्तक का आमुख (Foreword) प्रो. प्रदीप के. जोशी, चेयरमैन – एनटीए एवं पूर्व चेयरमैन – यूपीएससी, नई दिल्ली द्वारा लिखा गया है।
कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों में विधायक श्रीमती सरिता आर्य, डॉ. विजय कुमार, डॉ. मोहित रौतेला, नितिन कार्की, डॉ. दीपक मेंलकनी, निखिल बिष्ट आदि शामिल रहे।
इस अवसर पर प्रो. नीता बोरा शर्मा, निदेशक, एवं प्रो. संजय पंत, अधिष्ठाता छात्र कल्याण ने सभी लेखकों को बधाई दी और इसे उच्च शिक्षा तथा अनुसंधान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया।
मंत्री डॉ. रावत को इस मौके पर शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया एवं पुष्पगुच्छ के साथ-साथ छह उपयोगी पौधों के फ्लायर्स भी भेंट किए गए।
यह पुस्तक उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे वेस्टर्न हिमालय क्षेत्र की जैव विविधता को समझने और संरक्षित करने की दिशा में एक मील का पत्थर मानी जा रही है।
