
पौड़ी – उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले ने वनाग्नि नियंत्रण और जैव विविधता संरक्षण में एक अनुकरणीय मॉडल प्रस्तुत किया है। यह पहल न केवल प्रशासन और स्थानीय समुदाय की साझा जिम्मेदारी को दर्शाती है, बल्कि यह देशभर में पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरणा का स्रोत बन रही है।

पौड़ी की जैव विविधता: एक नजर
पौड़ी गढ़वाल जिला 5,329 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और यहां के 67% क्षेत्र में घने जंगल हैं। इसमें जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क, राजाजी टाइगर रिजर्व, कालागढ़ टाइगर रिजर्व और सोनानदी वन्य जीव विहार शामिल हैं। यहां 212 बाघ, 414 तेंदुए, 1,083 हाथी और 550 से अधिक पक्षी प्रजातियां निवास करती हैं। हालांकि, वनाग्नि इस जैव विविधता के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुकी थी।
शीतलाखेत मॉडल: सामुदायिक नेतृत्व में सफलता
पौड़ी जिले ने अल्मोड़ा के शीतलाखेत मॉडल को अपनाया है, जिसमें स्थानीय समुदाय और प्रशासन मिलकर वनाग्नि नियंत्रण में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। अदवाणी वन बंधु समिति का गठन किया गया है, जिसमें 11,728 ग्रामीणों को जंगलों की रक्षा के लिए शपथ दिलाई गई है। इस समिति का उद्देश्य लोगों में जंगलों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाना और आग की घटनाओं को रोकने में सक्रिय योगदान सुनिश्चित करना है।
जनसहभागिता: बदलाव की सबसे बड़ी ताकत
इस अभियान की रीढ़ रही जनसहभागिता। जिले की 394 ग्राम पंचायतों में वनाग्नि जागरूकता शपथ कार्यक्रम आयोजित किए गए। 157 स्कूलों में बच्चों को वनाग्नि के दुष्प्रभावों के बारे में बताया गया। इसके साथ ही, 55 ग्राम स्तरीय वनाग्नि प्रबंधन समितियों का गठन किया गया, जो ग्राम प्रधानों की अध्यक्षता में 300-400 हेक्टेयर जंगल की निगरानी करती हैं। इन समितियों को प्रोत्साहन के लिए 30,000 रुपये की सहायता राशि भी दी गई।
तकनीक और सामुदायिक प्रयासों का तालमेल
प्रभागीय वनाधिकारी स्वप्निल अनिरुद्ध के अनुसार, पौड़ी की भौगोलिक संरचना और विविध पारिस्थितिकी तंत्र इसे वन्यजीवों के लिए सुरक्षित आश्रय बनाती है। वनाग्नि से निपटने के लिए पोलर सैटेलाइट तकनीक और 134 क्रू स्टेशनों पर 600 फायर वॉचर तैनात किए गए हैं। इस तकनीकी-मानवीय समन्वय से आग की घटनाओं को तुरंत पहचानकर नियंत्रित करना संभव हुआ है।
पिरूल एकत्रीकरण: आग रोकथाम का प्रभावी कदम
मुख्यमंत्री पिरूल एकत्रीकरण योजना ने भी इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वर्ष 2024-25 में 19,000 क्विंटल चीड़ की सूखी पत्तियां (पिरूल) एकत्र की गईं, जो जंगल में आग का प्रमुख कारण बनती हैं। चालू वर्ष 2025-26 में अब तक 4,000 क्विंटल पिरूल संग्रहीत किया जा चुका है, जिससे न केवल वनाग्नि की घटनाएं कम हुईं, बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला।
वनाग्नि की घटनाओं में कमी
इस अभियान का असर स्पष्ट दिखाई दे रहा है। उत्तराखंड वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष की 1,065 वनाग्नि घटनाओं की तुलना में इस वर्ष अब तक केवल 197 घटनाएं दर्ज की गई हैं। पौड़ी का यह प्रयास न केवल जैव विविधता की रक्षा में मील का पत्थर साबित हो रहा है, बल्कि यह भी दिखाता है कि प्रशासन और जनता का साझा प्रयास पर्यावरण संरक्षण में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।
