हल्द्वानी। (धीरज भट्ट ) जी हां कहीं आप भी तो नोमोफोबिया के शिकार तो नहीं हैं। आखिर में यह नोमोफोबिया कौन सा बला है। डॉक्टर नेहा शर्मा का कहना है कि मोबाइल खोने या पास ना होने पर जो चिंता होती है उसे नोमोफोबिया कहते हैं। मोबाइल के आने के बाद यह फोबिया आम बात हो चुकी है। स्कूली बच्चों में सबसे ज्यादा इसका क्रेज देखने को मिल रहा है क्योंकि बच्चों का मन पढ़ाई वह स्कूल जाने से हट रहा है। डॉक्टर नेहा शर्मा ने कहा कि वह आजकल आए दिन ऐसे केसों मरीजों को देख रही है जो कि फोन एडिक्शन से ग्रसित हैं। उनके पास सबसे ज्यादा केस बच्चों का स्कूल में जाना पढ़ाई में मन न लगना वह दिन भर स्मार्टफोन में लगे रहना आ रहे है। डॉ नेहा ने बताया कि स्मार्टफोन एडिक्शन को नोमोफोबिया भी कहते हैं। यह एक खतरनाक साइक्लोजिकल स्थिति है। इसमें व्यक्ति के मन में अपने फोन पर लगातार कुछ ना कुछ करते रहने जगह के फोटो लेना या व्हाट्सएप या सोशल मीडिया पर कहीं भी कभी भी चैट में मजबूर रहना जैसे विचार आते रहते हैं। डॉक्टर नेहा शर्मा ने बताया कि उनके क्लीनिक में आने वाले 30 से 40ः मामले बच्चों में नोमोफोबिया के आ रहे हैं। ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल में कम प्रदर्शन वह ध्यान की समस्या को लेकर आते हैं। यह सभी स्मार्टफोन के एडिक्शन से ग्रसित होते हैं। वहीं यदि बच्चा नोमोफोबिया से पीड़ित है तो इन बिन्दुओं पर भी ध्यान दें।
1- मोबाइल खोने का सपना आना- क्या आपको रात में मोबाइल खोने का सपना आता है और आप उसे पकड़ने के चक्कर में घबरा कर उठ जाते हैं। वहीं हमारे मन में दिन रात उसी के बारे में सोचते रहते हैं।
2-मोबाइल के साथ सोना- इसमें इंसान को अपने मोबाइल के बिना नींद नहीं आती है। देखने में आया है कि वह मोबाइल को या तो अपने बगल में रखकर सोते हैं या फिर से अपने तकिया के अन्दर।
3- मोबाइल ना मिलने पर पसीने छूटना- मान लीजिये किे आपने अपने मोबाइल को गलती से कहीं रख दिया हो और अब उसे ढूंढ नहीं पा रहे हैं तोे जाहिर सी बात है कि आप परेषन हो जायेंगे। इधर थोड़ी बहुत चिंता करने से कुछ नहीं होता लेकिन अगर वह मोबाइल खो जाने पर आपके पसीने छूटने लगें और आप खुद को असहाय महसूस करने लगे तो समझ लीजिये कि मामला गंभीर है।
4-बाथरूम में मोबाइल साथ ले जाना-कई लोगों को लगता है कि उनके बाथरूम जाने के दौरान कोई जरूरी काल आ सकती है इसलिए वे मोबाइल को बाथरूम में लेकर जाते हैं।
5- दो मोबाइल फोन रखना- कई लोगों को लगता है कि यदि उनका पहला मोबाइल खो जाए तो उसका दूसरा वाला मोबाइल काम आयेगा। दो-दो मोबाइल फोन रखने कि इतनी चिंता करना मतलब कहीं कुछ गडबड़ है।
6- लो बैटरी लो मूड- अगर फोन की बैटरी बिल्कुल लो चल रही है तो ऐसे लोगों को गुस्सा आने लगता है। कई लोग तो डिप्रेशन में भी चले जाते हैं।
7-फ्लाइट मोड-यदि आप प्लेन से नीचे उतरते ही तुरंत अपने फोन को फ्लाइट मोड से हटाकर नार्मल मोड में कर लेते हैं। इसका मतलब यह है कि आप दुनिया से कटे रहना पंसद नहीं करते।
समाधान
डा. नेहा शर्मा ने बताया कि मनोवैज्ञानिक उपचार द्वारा उन्हें इस लत से बचया जा सकता है। उनका कहना है कि जब घर पर हां तो फोन का इस्तेमाल कम करें। जिन लोगों के साथ रहना पसंद करते हैं उनके साथ घूमने जाएं। परिवार के साथ समय ज्यादा व्यतीत करें। एक निश्चित समय के बाद ही फोन का इस्तेमाल करे।
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